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उबल रहा अब रक्त देश का ,निकला ताप अंगारों से

उबल रहा अब रक्त देश का ,निकला ताप अंगारों से

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उबल रहा अब रक्त देश का ,निकला ताप अंगारों सेI

  रक्तबीज के औलादों ने घाटी में है जन्म लिया , 

क्यारी केशर की कुम्हलाने का , उसने है यह प्रण लिया I  

 सुन नराधम ,पाखंडी ,द्रोही ,मेरी अब ललकारों से ,

 उबल रहा अब रक्त देश का ,निकला ताप अंगारों से | 

 तेरे कुकर्मों के कारण जनमानस है  डोल रहा I 

अकारण ही नहीं देश का ,रक्त यूँ खौल रहा I 

बार - बार जला तिरंगा , हाथ मिलाता  मक्कारों से I 

उबल रहा अब रक्त देश का ,निकला ताप अंगारों से | 

घाटी की रक्षा में , जो शहीद हुए जाते हैं , 

शहादत न व्यर्थ  होगा , शोले ये भड़काते हैं  I

सूख गए आँखों के आँसू , बहते रुधिर के धारों से I

 उबल रहा अब रक्त देश का , निकला ताप अंगारों से | 

तू अल्लाह अकबर करता है ,मैं भारत माँ की जय करता हूँ I 

अखंडित भारत, न खंडित  होगा , वचन आज ये  लेता हूँ I 

चाहे जितना जोड़ लगा ले , उधारी के  हथियारों से I 

उबल रहा अब रक्त देश का , निकला ताप अंगारों से | 


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