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सपने

सपने

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अपनों  का , सपनों का , रिश्तों का था ऐसा याराना ।

एक  साथ  जीवन   में  हरदम रहता था आना – जाना ।

इनका रिश्ता सुखद,सुकोमल जल-मछली के जैसा था ।

अपना मधुबन पुष्प तो,सपना सुंदर तितली जैसा था ।

रिश्ते,अपने,सपने तीनों अच्छे साथी बनके रहते थे ।

कुसुम-भ्रमर तो कभी कोई दो दीपक-बाती रहते थे ।

फिर अपने ने रिश्ते के कानों में कुछ-2 बात कही ।

सपना भी अपना ही था ना बात ये उनको याद रही ।

रिश्तों ने , अपनों ने जब सपनों का यूँ प्रतिकार किया ।

सपनों ने अपनों से इस रिश्ते को भी स्वीकार किया ।

अपनों से जब  सपनों के रिश्ते टूटे चकनाचूर हुऐ ।

तब वो  सपने  अपनों  से , रिश्तों से इतना दूर हुऐ ।

अपनों से सपनों के बंधन की जो नाज़ुक डोरी है ।

रिश्तों की सतरंगी दुनिया में भी कोरी-कोरी है ।

अपनों के बिन सपना  सपने जैसा लगता है ।

फिर भी रिश्ता सपने  से क्यूँ अपने जैसा लगता है ।


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