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क्या कहू किसी से…….

क्या कहू किसी से…….

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क्या कहूँ किसी से………
सफ़र और हमसफ़र के रिश्तों को निभाता रहा
बिछड़ना मंज़ूर नहीं …. और बिखरना जानता नहीं 
इसी ज़द्दोज़हद में ज़िन्दगी उलझी रही 
क्या कहूँ किसी से……..
कभी सफ़र आगे होता और कभी हमसफ़र....
रुकते तो सफ़र छूटता और चलते तो हमसफर छूटता...
उनकी चाहत…….. और मंज़िल की भी हसरत 
मुद्दत का सफ़र भी ….. और बरसों का हमसफ़र भी ….
ए दिल तू ही बता...उस वक़्त मैं कहाँ जाता...
रुकते तो बिछड़ जाते और चलते तो बिखर जाते....
क्या कहूँ किसी से…….


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