मृगतृष्णा
मृगतृष्णा
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बस एक मृगतृष्णा है
छोड़ दे भागना
उसके पीछे।
आग है तो
जलेगी- बुझेगी
जिंदगी है, वह भी चलेगी
लक्ष्य सामने कहीं होगा
रास्ता तो बना…
तू स्वयं को ले पहचान
अब सत्य को ले मान
उठा अब तीर-कमान
तुझमे काबिलियत है
पर्वत चीरने की..
आसमां नापने की।
हूँकार भर, छलांग मार
स्वयं को ले जा
काले बादलों के पार
मुश्किलों के ऊपर
तू होगा
घना कोहरा तुझसे दूर।
नहीं तू दीवाना नहीं
नहीं मैं अनजानी कहाँ!