प्रकृति और मनुष्य
प्रकृति और मनुष्य
प्रकृति हमारी कितनी प्यारी ,
सबसे अलग और सबसे न्यारी,
देती है वह सबको सीख,
समझे जो उसे करीब.
पेड़,पौधे और नदी,पहाड़,
बनाए ये सुन्दर संसार.
पेड़ पर लगे भिन्न भिन्न पत्ते,
सिखाते हमें रहना एक साथ.
पेड़ की ज़िन्दगी जड़ों पर टिकी है,
मनुष्य की ज़िन्दगी सत्कर्मों पर टिकी है.
आसमान है ये विशाल अनंत,
मनुष्य की सोंच का भी न है अंत .
हे मनुष्य समझो ये बातें सारी,
प्रकृति हमारी कितनी प्यारी,
सबसे अलग और सबसे न्यारी .
बूँद बूँद से बनती है नदी,
एक सोंच से बदले ये सदी
मनुष्य करता है भेदभाव,
जाने ना प्रकृति का स्वभाव
सबको होती है प्रकृति नसीब
हो अमीर या हो गरीब
मनुष्य की तरह न परखे है अमीर या है गरीब .
पेड़ सहता है बाढ़ को लेकर पृथ्वी का सहारा
मनुष्य बदल सके परिस्तिथि को यदि सब बने एक दूसरे का सहारा
करे जो प्रकृति का नाश,
होता है उसका विनाश.,
मनुष्य जिए और जीने दे,
मिलकर रहे सब एक साथ.
है यह समय कुछ करने का,
जानने का और समझने का,
मिलजुल कर खड़े होकर,
प्रकृति को बचाने का.
हे मनुष्य समझो ये बातें सारी,
प्रकृति हमारी कितनी प्यारी सबसे अलग और सबसे न्यारी