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Kavi Vijay Kumar Vidrohi

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Kavi Vijay Kumar Vidrohi

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लक्ष्मीपुत्रों की प्रतीक्षा

लक्ष्मीपुत्रों की प्रतीक्षा

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“लक्ष्मीपुत्रों की प्रतीक्षा”

हे लक्ष्मीपुत्रों ! झरोखे खोलकर देखो वहाँ, 
है ठिठुरता,है बिलखता,रो रहा बचपन जहाँ। 
वो जहाँ कचरे में पलती,राष्ट्र की बुनियाद है, 
भूल ही बैठे हो सब कुछ, या अभी कुछ याद है । 
है यही कमज़ोर बचपन,हार मनवा लेगा कल, 
बाद तेरे, बाद मेरे, देश को थामेगा कल । ......................................................

तू देख! उसके देह को,उस आँसुओं की धार को, 
देख ले!, वीभत्सता को, द्वेष को, प्रतिकार को ।
भूख, लाचारी के बंधन से निकलने की चाह है, 
चिलचिलाती धूप में भी,रौशनी ये स्याह है । 
है यही कमज़ोर बचपन, हार मनवा लेगा कल, 
बाद तेरे, बाद मेरे,  देश को थामेगा कल । .......................................................

तुम रहो महलों में , झुग्गी बस्तियों को ताकना, 
अपने धन के बढ़ रहे,  ओछे से क़द को मापना। 
अब सँवारो बचपनों को, तुम ना ख़ुदगर्जी रखो, 
हैं ग़रीबी से जो बेबस, उनसे हमदर्दी रखो। 
है यही कमज़ोर बचपन हार, मनवा लेगा कल,
बाद तेरे, बाद मेरे, देश को थामेगा कल । ........................................................

  • "विद्रोही"

 


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