अकल्पनाओं की कल्पना...
अकल्पनाओं की कल्पना...
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जैसे चाँद कभी टेढ़ा दिखता हो
या बादलों का रंग नीला हुआ जाता है...
लाल रंजित रक्त जब
देह को रंगता है
की श्वेत आँखों को...
जब कोई ख्वाब सूझता है
तब जनमति है
अकल्पनाओं की...
कल्पना...