माँ तुम यहीं कहीं हो
माँ तुम यहीं कहीं हो
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अपने आंचल की शीतल, आशीषों के साथ।
हवा संग बहती हो मेरे आसपास,
एहसास है मुझे,
माँ! तुम यहीं कहीं हो!
वो तुम्हारा चश्मा!
जिसे आज भी रखा है,
सम्हाल के मैंने माँ!
उसमें से झांकती हैं,
तुम्हारी मुचमुचाती आँखें!
वो तुम्हारी नजर,
मुझे नहलाती हैं,बड़े प्यार से!
महसूस करती हूँ मैं,
माँ! तुम यहीं कहीं हो!
वो कोने में खड़ी है तुम्हारी छड़ी,
निहारती है मुझे!
तुम्हारी हथेलियों के स्पर्श के
खुशबू से भीगी हुई उसकी मूठ!
ताकती है कि जैसे तुम यहीं कहीं हो!
वो सोहर, वो कजरी, वो लग्न, वो कहरवा!
तुम्हारे गीत मेरे कानों में बोलते हैं माँ!
तुम्हारी चुप्पी को अब यही तोड़ते हैं,
सब बहते हैं मेरे अंदर! के धार की तरह!