शून्य
शून्य
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शून्य शून्यता की परिधि में,
निहित है समस्त संसार ।
शून्य से आकर,
शून्य में ही विलीन हो जाते हैं ।
संसार रचतें हैं हम, शून्य के मध्य,
संसार को ही सार समझते हैं ।
सम्पूर्ण जीवन सार को सारगर्भित समझते हैं,
अंत में शून्य में ही विलीन हो जाते हैं ।
जीवन नश्वर है, जानते हैं सब,
फिर भी, शून्य को नकारते हैं ।
अनंत है, अबोध है, अगाध है,
कुछ नहीं पर शून्य जीवन का सम्राट है ।
जो जी गया सो तर गया परंतु,
जो विलीन हो गया सो अमर हो गया ।
शून्य से आकर,
शून्य में ही विलीन हो गया ।