आतंकवाद
आतंकवाद
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बड़ा शोर मचा है आतंकवाद पर आजकल,
पर हिंसा की यह रीत तो है, सदियों पुरानी ।
नारी की गति देखो, जो कल थी आज भी वही,
पाप ओढे, पाप धो -धो, अब तो बेचारी गंगा भई ।
पुरातन काल हो या नवनिर्मित आधुनिक समाज,
नारी तो आतंकवाद का शिकार होती ही आयी ।
जन्म देती आयी मानव को हर युग में,
हर युग में हेय दृष्टि का पात्र ही रही ।
कब देवी बन उपर सिंहासन पर चढ़ना चाहा,
हर लम्हा, मानव सी मानवी ही बनना चाहा ।
कोख में संतति को आसरा देने वाली,
हर युग में आसरा तलाशती ही आयी ।
हिंसा हर स्वरूप में हिंसा ही है,
जो बोया वही फल तो उगा समाज में ।
जो घरों में रोपित हुआ, वही समाज में पल्लवित हुआ,
अब बोलो किस आतंकवाद को कहें धातक।
डोली क्यों अर्थी बनी, मानुष क्यो बने आतंकी? ?