मैं था तो नहीं...
मैं था तो नहीं...
मैं था तो नहीं मौसम,
फिर भी बदलता रहा हूँ ,
कभी दायरों में उन्मुक्त ,
कभी आसमाँ सा सीमित रहा हूँ !
मैं था तो नहीं चाँद,
फिर भी घटता बढ़ता रहा हूँ,
कभी उसके दुःख पर खुश,
कभी अपने एहसान भूलता रहा हूँ !
मैं था तो नहीं वक़्त,
फिर भी देखो चलता रहा हूँ,
कभी काफिले रात में बांधता,
कभी सूरज सा पिघलता रहा हूँ !
मैं था तो नहीं आवाज़,
फिर भी कहता सुनता रहा हूँ,
कभी सन्नाटे की फुसफुसाहट,
कभी शोर में चीखता रहा हूँ !