कौन है ?
कौन है ?
“कौन है ?”
प्रेत है,साया या दानव,ज़लज़ला है कौन है ।
आज नव पीढ़ी, अनल में झोंकता ये कौन है ।
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कौन है ? जिसने कि मज़हब के वचन गंदे किए ।
फूल,ख़ुशबू,बाग़ लूटे और चमन गंदे किए ।
कर दिया दूषित वतन को,मज़हबों की आड़ में ।
सिसकियाँ भी दब गयीं,उस“कौन” की चिंघाड़ में ।
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चोरियाँ, दुष्कर्म, हत्या लूट, छोटी बात है ।
कौन है? आडंबरों में, ये सभी को ज्ञात है ।
अब कहो ! कैसे कहें ? पुरज़ोर वन्दे मातरम
घुट रहा है , हो रहा कमज़ोर वंदे मातरम
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तेरा मज़हब, मेरा मज़हब कर रहे धिक्कार है !
सिर्फ मानव धर्म का जज़्बा, मुझे स्वीकार है ।
कौन सा मज़हब सिखाता है, गलों को काटना ?
है कहाँ लिखा, जहाँ में हादसों को बाँटना ?
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सोच कर देखो जो तुमपे हँस रहा है “कौन” है ।
श्वेत वस्त्रों में छिपा है, हँस रहा है, मौन है ।
“कौन” है जिसके इशारों से ये पीढ़ी जल रही ।
घोर तम के साथ सहमी बेबसी से पल रही ।
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इस कौन से मंदिर जले हैं और टूटी मस्ज़िदें ।
कौन पूरी कर रहा है, आड़ से अपनी ज़िदें ।
कौन है जिसने ज़हर , हैवानियत का भर दिया ।
कौन है जिसने वतन को , खोखला सा कर दिया ।
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दो दिशा अब तुम स्वयं को लक्ष्य निर्धारण करो ।
कौन की परतंत्रता त्यागो स्वयं से रण करो ।
इस जवानी की ये अग्नि क्षीण करके मौन हो ।
जाओ दर्पण को निहारो, पूछ लो तुम कौन हो