-: इल्ज़ाम लगा दो :-
-: इल्ज़ाम लगा दो :-
भरी महफिल में सरेआम इल्ज़ाम लगा दो
दिल न भरे तो इश्तेहार खुलेआम लगा दो
मगर रखना यह याद अपनी ज़ेहन में तुम
सच कभी नहीं जलता बड़ी आग लगा दो
हम तो पले यारों उनके परवरिश में यहाँ
झुकाया नहीं सिर चाहे क़त्लेआम करा दो
बदनामी की साज़िश ज़िंदा नहीं रहती सदा
चाहे तहखाने में सबूत सारे दफ़न करा दो
आँख से पट्टी तो कभी हटेगी न्यायालय में
गवाहों को तू जज से कितना भी छिपा दो
शराफत की चादर ओढ़ न बन मासूम तुम
हो जाओगे नंगे अगर इसे बदन से हटा दो
अरे दो दिन की ख़ातिर तो आऐ जहाँ में
दिल छिपे शैतान को तुम दिल से भगा दो
ख़ुदा के घर में भी बसर नहीं होता उनका
नापाक इरादों से सौ बार गर सर झुका दो
ऊपर वाले की निगाह से बच नहीं सकता
चाहे सच्चाई की तू सारी रौशनी बुझा दो
है देर कुछ पल का मगर अंधेर नहीं वहाँ
जी चाहे तुम्हें जितना अब काँटे चुभा दो
“निर्भीक” तो ख़ुद निडर है वो नहीं डरेगा
धारदार हथियार से तू कितना भी डरा दो