छोटू हूँ न इसीलिऐ तो
छोटू हूँ न इसीलिऐ तो
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क्या जाता है अरे किसी का
अगर सोच लूँ ऎसे-वैसे।
सोचूँ जो पुस्तक में रहता
पाठ पॆन में आता कैसे?
बड़े शान से यही बात जब
मैंने पापा को बतलाई।
हँसे ज़ोर से गाल थपककर
बात मुझे कुछ यूँ समझाई।
’अरे पाठ पुस्तक में रहता
जिसे दिमाग तुम्हारा लेता
वही पॆन से उगल उगल कर
कागज पर उसको लिखवाता’।
छोटू हूँ न इसीलिऐ तो
बात न समझा इतनी सी मैं।
एक बार पापा बन जाऊँ
बात करूँगा कितनी ही मैं।
पर पापा कम्यूटर हो तो
पॆन उँगलियाँ बन जाती न?
हाँ यह बात पते की है
बात ठीक से समझ गऐ न?