हिंदी
हिंदी
माँ भारत का स्नेहकलश, दिग-अमृतघट भाषा हिंदी ।
हम काव्यजन्य संतानों के, प्राणों की परिभाषा हिंदी ।
देववाणी की वरदसुता, भाषा की अभिलाषा हिंदी ।
मधुरनाद, उज्जवल ललाट, भारत के हित आशा हिंदी ।
आंग्लजनित, द्रोही, कपूत कैसे समझेंगे हिंदी को ।
हुन्कार, ग्रामश्री पता नहीं, ना जान सके कालिंदी को ।
इंग्लिश पटरानी बन बैठी, हिंदी घर घर में रोती है ।
बेटों के दिए बिछौने पर, अब अलमारी में सोती है ।
हिंदी हम में से कई सिर्फ़, अब छंद-सृजन को पढ़ते हैं ।
बकते अंग्रेजी हैं दिनभर, हिंदी में कविता गढ़ते हैं ।
कब तक हम हिंदी माता का, ऐसे ही जी बहलाऐंगे ।
कविता हिंदी में भले लिखें, लेकिन कपूत कहलाऐंगे ।
विद्रोही केवल नाम नहीं, इस रण का जन्म-लगन हूँ मैं ।
नवयुग के हिंदीप्रेम तत्व का अग्रिम पुण्यफलन हूँ मैं ।
पुष्पवृष्टिहित समय नहीं, लूँ रुधिरलेखनी खार लिखूँ ।
हर मैकाले के वंशज के, माथे पर मैं गद्दार लिखूँ ।
- ओजकवि विजय कुमार विद्रोही