लेखक : राजगुरू द. आगरकर अनुवाद : आ. चारुमति रामदास लेखक : राजगुरू द. आगरकर अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
अब जनता अपनी आँख खोले और धराशायी कर दे कालयवन को। अब जनता अपनी आँख खोले और धराशायी कर दे कालयवन को।