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पतझड के पंछी तो अक्सर उड़ ही जाते हैं! यथार्थ के सागर के बीच अभी भी कहीं-कहीं आदर्श के द्वीप पाए जाते हैं। कहाँ खो गए भीड़ में आते-जाते वो बादल भी खोया वो मौसम भी छूटा हम सही और गल्त की कशमकश में कभी-कभी इंसानियत भूल जाते हैं। और हम खुद दूसरों से कहते फिरते हैं कि इंसानियत मर चुकी है। आदर्श राजा आर्यावर्त की पावन भूमि सृष्टि के पोषक श्रु विष्णु जी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीर नरलीला खेलों में जाते थे हार असुरों संग अहिल्या उद्धार वंचित दलित संगठित असंभव काम अनुकरणीय हर क्षण जीवन का

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