व्यंग्य
व्यंग्य
" चले नेताजी सरकार गिराने "..आज छुट्टन के पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे जबसे उसने यह सुना कि उसके साहबजी यानी नेताजी गाँव आ रहे है खुशी के मारे उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। वह साहबजी के आगमन की तैयारी में जुट गया उसे याद है "वह बारह वर्षों से साहब का नमक खा रहा है " साहब का मुंह लगा होने के कारण वह उनकी नस नस से वाकिफ़ था उन्हें कब किस चीज की जरूरत है यह उसे जुबानी याद था, इस पर भी जब उनका गुस्सा सातवें "आसमान पर पहुँच जाए तब उसे कैसे उतारना है" यह सारे हुनर उसने साहबजी के पैर दबाते समय सीख लिए थे। कोठी में कदम रखते ही साहब को नमकीन में क्या लगेगा छुट्टन उसकी तैयारी में जुट गया उसने सुबह ही रज्जो को कोठी पर बुलाकर बैठक और दालान अच्छी तरह धुलवा कर उस पर फर्श बिछा दिए थे । वैसे रज्जो को कोठी पर बुलवाने की भी दो वजह थी एक तो वह तेजी से उसके काम में हाथ बंटती थी, दूसरा उसे देखते ही साहब के चेहरे पर रौनक आ जाती थी! दोनों कोठी की साफ सफाई में व्यस्त हो गए एक एक कमरे को काँच की तरह साफ किया गया। साहब का कमरा तो फिक्स था उसमें किसी के भी रुकने की मनाही थी उनकी अनुमति के बगैर अगर कोई गलती से भी उसमें चला गया तो अगले चुनाव में उसका टिकिट कटना बिल्कुल तय था इसीलिए लोग उनके दरवाजे पर लगे ताले को भी सलाम ठोकना अपना अहो भाग्य समझते थे ! उत्साही दयाराम साहबजी से नया नया जुड़ा था वह उनके हर आदेश को पलक झपकते ही पूरा कर देता था मगर " साहब की अनुमति के बगैर उनके कमरे में नहीं जाना है " इस मौखिक आदेश की उसे जानकारी नहीं थी इसी कारण एक दोपहर जब साहब जिला पंचायत की मीटिंग में गए हुए थे, दयाराम अन्य लोगों की देखरेख के लिए कोठी पर ही रह गया था भरी गर्मी में ठंडक की गरज से वह साहब के कमरे में चला गया, जीवन में पहली बार इतने मोटे डनलप के गद्दे पर बैठा था लेटते ही आँख लग गई उसकी आँख तब खुली जब गुस्से से आग बबूला साहब के आदेश पर उसे नींद में ही बाहर दालान में फेंक दिया गया । उसके बाद दयाराम गाँव में कभी दिखाई नहीं दिया यह बात पूरे गाँव में फ़ैल गई तब से किसी को कोई सरकारी काम हो या अर्जी देने का, किसी ने दालान से आगे कदम नहीं रखा।
मगर एक बात छुट्टन के भेजे में अब तक नहीं घुस रही थी कि जब राजनीति का सारा काम रिसोर्ट से होता है तो साहब सरकार गिराने भला यहाँ गांव में क्यों आ रहे है उसने झूलन से पूछा भी वह बोला शायद यह हाईकमान का आदेश होगा, यह सुनकर तो उसका दिमाग और चकराने लगा "साहब के ऊपर भी कोई है का ", वह तो पिछले बारह बरस से उन्हें ही सरकार मानता आ रहा है कहीं " बीबीजी तो हाईकमान नहीं है ? " , नहीं नहीं ये नहीं हुई सख्त है, बीबीजी तो " चार जमात से ऊपर पढ़ ही नहीं पाई " उन्हें राजनीति का ज्ञान भला क्या होगा नहीं वे हाईकमान नहीं हो सकती उसने अपने सिर को बड़ा सा झटका दिया उसे क्या करना है यह सब जानकर वह फिर से अपने काम में मशगूल हो गया, अचानक से एक बात उसके दिमाग में सूझी साहबजी सरकार गिराने आ रहे है मगर, सरकार गिराएंगे कहाँ से ,कही दूसरी या तीसरी मंजिल से तो नहीं वह हड़बड़ा गया और रज्जो को लेकर दोनों मंजिल अच्छी तरह साफ कर दी उसे मालूम था साहबजी को लेतलाली बिल्कुल पसंद नहीं है। अभी वह नीचे उतरा ही था कि सायरन बजाती हुई सरकारी गाड़ियां दन दनाती एक के बाद एक दालान में खड़ी हो गई और सब धड़ धड़ाते हुए कोठी में प्रवेश कर गए साहबजी के रुतबे का सवाल था उसने नए काँच के ग्लास में सबको ठंडा पानी पिलाया फिर सिर झुकाकर छुट्टन बोला, साबजी कॉफी बनाऊँ या ठंडा ही लगा दूँ हाँ पहले कुछ ठंडा लगा दो, हमें कुछ जरूरी काम भी करना है जी साहबजी , यह कहकर वह बाहर आ गया। साहब ने राजधानी में बैठे पार्टी के बड़े नेता को मोबाइल लगाया और सरकार गिराने के बारे में चर्चा की। उन्हें हर हाल में मंत्री बनकर महकमे में अपना रसूख दिखाना था किंतु मीडिया में उनकी खराब छवि के कारण पार्टी ने उन्हें मंत्री बनाने से साफ इनकार कर दिया इसी कारण वे गुस्से से भरे अपने समर्थकों के साथ कोठी पर सरकार गिराने ही आए थे। एकाएक हाईकमान का फोन आ गया यदि " उन्होंने पार्टी और सरकार के खिलाफ जाकर कोई भी कार्य किया तो उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया जाएगा।" बाहर उनके नाम के जयकारे लग रहे थे मगर अंदर हाईकमान की चेतावनी के बाद अपना राजनीतिक करियर कहीं चौपट न हो जाए इस डर से साहबजी की सिट्टी पिट्टी गुम थी।
