वर्तमान में रहे

वर्तमान में रहे

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एक जैन गुरु अपने शिष्यों को सिखाते थे कि सदैव वर्तमान में रहना चाहिए ।अतीत और भविष्य

के मोह में नहीं फंसना चाहिए।एक बार वर्तमान में उपस्थित रहने का उपदेश दे रहे थे, उनके एक उत्साही शिष्य ने

उनसे पूछ लिया वर्तमान में उपस्थित रहने से आपका क्या मतलब है? गुरु ने कहा मैं प्रयोग करके दिखाता।

हूँ। मेरे साथ पास के जलाशय तक चलो। जलाशय के पास पहुँचकर गुरु ने कहा हमें इस जलाशय को पार

करना है। बीच में पत्थर रखे हुए हैं, इन्हीं पत्थरों पर पैर रखकर गुरु शिष्य ने जलाशय को पार कर लिया।

गुरु ने कहा यह कितना आसान था। शिष्य ने कहा, हाँ क्या आप यह सिखाना चाहते हैं कि एक पत्थर पर

एक ही बार पैर रखना है? गुरु ने कहा नहीं तुम चाहो तो यह सीख सकते हो कि यदि तुम पत्थरों पर एक-

एक करके पैर रखोगे तो पार कर जाना सरल हो जायेगा। लेकिन मैं यह सीख नहीं देना चाहता था। मैं तुमसे।

कहूँगा कि तुम फिर पत्थरों पर पैर रखकर इसी तरह उस पार जाओ और इस बार जिस पत्थर को छोड़ रहे

हो, उसे अपने साथ उठा कर लेते जाओ। शिष्य ने जलाशय में जमे विशाल पत्थरों को भरपूर नजर से देखा

और बोला, गुरूजी इस तरह तो मैं पार नहीं जा पाऊँगा बीच में ही गिरकर डूब जाऊँगा? गुरु जी बोले फिर

अतीत और वर्तमान के पत्थर क्यों ढोते हो। आगे बढ़ना है तो हमें अतीत और भविष्य की चिंता छोड़कर

वर्तमान का दामन थामना होगा।


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