वो कौन था
वो कौन था
सुहानी हमेशा से ही ट्रेन पर सफ़र करती है। वैसे तो मजबूरी है।उसे करना पड़ता है,क्यूं की दफ़्तर से घर काफी दूर है।लगभग एक दिन का आधा वक्त सफ़र में बीत जाता है।इसलिए उसकी एक आदत है,पूरा सफ़र में किताब लेकर बैठना।सफ़र तो खत्म हो जाता है, नई मंजिल की स्वागत कर, लेकिन कहानी आधी रह जाती है।ट्रेन पर भी जो किताब बेचने लाते हैं वो ख़रीद लेती है। वैसे एक अच्छा कलेक्शन है किताबों की,उसके पास।
एक लम्बी छुट्टी के बाद कल उसे ऑफिस में ज्वॉइन करना पड़ेगा। इतवार के रात नौ बजे उसका ट्रेन थी।समय से पहले घर से निकल स्टेसन पहुंच गई क्यूं की कल वहां पहुंचना काफ़ी जरूरी है।पहुंचते पहुंचते लगभग छह बज जाएगी।बैग से पानी के बॉटल लाकर दो ढूंक पानी पी कर बॉटल को बैग में भर वहां से एक किताब निकाली।किताब के नाम "वो कौन था"।यही ट्रेन से ही खरीदा हुआ किताब।एक प्रेम कहानी।पहला कोटेशन पढ़कर ही पूरी कहानी पढ़ने का आग्रह काफी बढ़ गया।
उसमें लिखा था " हम लौटेंगे फिर से,बार बार, जबतक प्यार है,हम नहीं होकर भी है,प्यार में"
फिर एक जगह में लिखा था,
" हम बिछड़े कहां थे जो फिर मिलेंगे?"
खुद को सहेज कर बैठ गई ट्रेन में, पैर ऊपर कर,अपनी पीठ को पीछे सीट पर रख।
प्यार को जीत दिलवाने के लिए फिर से दो प्रेमी जिंदगी से हार गए।दो शरीर संदिग्ध हालात पर ट्रेन की पटरी पर पड़ी थी।समाज, परिवार, परिस्थिती सब जीत गए और आखिर में प्यार हार गया।एक दूसरे के हाथ आखिर तक पकड़े हुए मौत को आलिंगन किए खुशी खुशी।दोनों के हाथ बंधे हुए थे एक दूसरे से,मानो मरने के बाद भी उन्हें बिछड़ना नागवारा था।इतना ज्यादा प्यार और ऐसा भयंकर अंत।
क्या उन्हें हक नहीं था प्यार के साथ जीने की?प्यार के साथ मरना क्यूं मजबूरी है?जितना ज्यादा बेहद प्यार उतना ज्यादा दर्दनाक कहानी।ना चाहते हुए उसके आंख से आक्रोश के और दर्द भरा आसुं टपक रहे थे।अपनी चश्मा खोल रुमाल से आसुं को पोछ रही थी।पर अफ़सोस ,नहीं मिटा पाएगी लोगों की नीची सोच।रूढ़िवादी मानसिकता। पहले तो पढ़ते पढ़ते नींद आ जाएगी सोची थी। ऐसे भी काफी थक गई थी।लेकिन कुछ भावना उसे आखें खोलने नहीं दे रहे थे।जैसे समाज के आखें बंद होते है पर वो अपनी आंख बंद नहीं कर पाएगी। पैर को नीचे कर,कुछ वक्त वैसे ही खाली बैठ कुछ सोचने लगी।फिर से पानी निकाल कर एक ही ढोक ली थी तब एक अपरिचित व्यक्ति का आवाज़ उसे मजबुर किया उसके तरफ़ देखने को।
- जी कुछ परेशानी है,आप बोल सकते।
एक सज्जन ने उसे पूछा।
उसके तरफ़ नहीं देख सुहानी बोली
- जी शुक्रिया,पर कुछ परेशानी नहीं।
- पर आप परेशान दिख रहे है।कोई भी देखकर बोल देगा।
- जी ,नहीं तो बोली,अगर हूं तो यह मेरा निजी मामला है।
- माफ़ कीजिएगा।
और कुछ नहीं बोली सुहानी। ऐसे भी वो अपरिचित किसी से बात नहीं करती।उसकी यह बरताव कुछ नया नहीं है।
उसी कहानी के बारे में सोच सोच वो सो गई।आगे पढ़ने के लिए और ताकत नहीं था पर उत्सुकता बहत थी।
जब आखें खुली तो उसका स्टॉपेज पीछे छूट गया था।अब सही मायने में परेशान होने लगी।इधर उधर भागने लगी।आसुं रूक ही नहीं रही थी।किसी किसी को पूछने लगी।अपना फोन भी निकाल टटोलने लगी।कुछ फायदा नहीं।उसे पटना जाना था।वहां से तो रात दस बजे ही ट्रेन है,उससे पहले एक भी नहीं। आख़िर में मायूस होकर बैठ गई एक बेंच पर।मुंह पर परेशानी पसीना होकर लकीर बनाए थे।उसी वक्त वहीं लड़का पास आकर फिर से पूछने लगा,परेशानी का वजह।
लंबा कद, सुदिर्घ शरीर,फॉर्मल पहनावा,सुंदर चेहरा।बहुत ज्यादा पढ़ा लिखा या कुछ अच्छा जॉब कर रहा होगा सकल से लग रहा था।
- माफ़ करना।कल से देख रहा हूं।आप काफी परेशान है।अगर कुछ मदद कर सकता हूं तो मुझे अच्छा लगेगा।
मुसीबत के समय सारे पूछने वाले इंसान फरिश्ता लगते हैं भले ही अपरिचित हो।कल उसि के साथ इतना बुरा बरताव किया था सुहानी।
- जी आई एम् रियली सॉरी। मैं कोई अपरिचित व्यक्ति के साथ बात नहीं करती।आप भी जानते होगे,क्या क्या होता है आज कल। सब एक खबर बनके रह जाते बस।और वही डर के वजह से आप जैसे अच्छे इंसान भी अपमानित हो जाते हैं।
कल मैं परेशान नहीं थी।बस थकी हुई थी।पर आज मैं सच में बहत बड़ी मुशिबत में हूं।
- क्या हुआ,आप आराम से बोलिए।परेशान ना होकर।
- मेरा स्टॉपेज पीछे छूट गया।आज अफिस पर रिपोर्ट करना जरूरी था।और अगला ट्रेन रात दस बजे।मतलब फिर कल ऑफ़िस जा पाऊंगी।
- जो हो गया तो उसे हैं बदल नहीं सकते।समय को पीछे करना बेतुकी कोशिश है।इसके लिए परेशान मत होइए।
अच्छा आप कहां काम करते पहले बोलिए।
- जी ISRTM में।
- वो तब तो कोई परेशानी नही।वहां के डायरेक्टर मिस्टर संदीप हमारे जान पहचान के है। मैं बात करता हूं।और आप को स्टेशन पर बैठा कर हीं में जाऊंगा।
- बहत बहत शुक्रिया।पर आप इतना ज्यादा परेशान मत होइए मेरे लिए।
- जी यह इंसानियत है।कोई परेशानी की बात नहीं।
एक अच्छा इंसान के साथ वो बेफिक्र हो गई।अब इंतेज़ार भी उसे नहीं चुभ रहा था।दोनों एक छोटा सा होटल में खाने के लिए गए।तब सुहानी कल रात पढ़ी हुई आधा कहानी के बारे में बात करने लगी।किसी अपरिचित के साथ बात करने के लिए इससे अच्छा उपाय और क्या होगा।वो लड़का भी किताब को पसंद करने बाला में से है बोला।और यह कहानी काफी दिन पहले पढ़ी हुई है जब बोला तो सुहानी अपनी उत्सुकता दिखा कर आगे की कहानी जानने के लिए अनुरोध की।
एक भयंकर और दर्द भरा कहानी उसे झकझोर दिया।उसमें भी एक सुंदर प्रेम कहानी।लेखक के खूब तारीफ करने लगी। ऐसे बात करते करते समय का पता ना चला।वो लड़का खुद एक सीट बुक कर दिया और जाते जाते बाय बोल कर चला गया।सुहानी इन सब बातों के बीच उसे आखरी शुक्रिया भी नहीं बोल पाई।पीछे के तरफ़ मुड़कर देखी तो वो नहीं था।चारों तरफ आखें घुमाकर उसे ढूंढने लगी पर कोई पता नहीं।सारे अपरिचित के भीड़ में एक अपना सा अपरिचित मानो कहीं गुम हो गया।
गाड़ी छोड़ने से पहले भी एक बार ढूंढने की कोशश की पर कुछ फायदा नहीं।
मन में उसको शुक्रिया कर उसका अच्छा भविष्य की दुआ करने लगी।आदत से मजबुर वही किताब निकाल कर सुनी हुई कहानी को पढ़ने लगी। जो आधा भी नहीं ख़तम हुआ था अब उसी कहानी को पूरी करनी है।
पढ़ते पढ़ते उसकी आखें फटी की फटी रह गई।वो लड़का जैसे इस कहानी के पीछे का कहानी उसे सुना दिया।अंत तो और ज्यादा भयंकर था।वो कौन था ,मानो इसी कहानी का मुख्य किरदार।यह सोच डर कर जोर जोर से चीखने लगी सुहानी।
ज्योत्स्ना रानी साहू
ओड़िशा
सुंदरगढ़