विपदा बेटी की, सोच एक समाज की
विपदा बेटी की, सोच एक समाज की
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बात की शुरुआत करते है हम बेटी के बचपन ओर उसके संजने, संवरने ओर शादी एवम् विदाई की।
एक बेटी को कौन -कौन से किरदार ओर सामाजिक रस्मों से गुजरना पड़ता है और वो भी एक नारी के किरदार में उस अभिभूत करने वाले साक्षात देवी के किरदार को वन्दन करते हुए उसके गुणों का चित्रण किया गया है इस कहानी में :-जब वो माँ की नन्ही आँचल कोख में होती है तो उसको डर लगा रहता है खुद को खोने का, ना जाने कितनी विपदा सहकर एक माँ की कोख से वो जन्म लेती है इस संसार मे, फिर भी वो खुद को असहज पाती है इस समाज के अनसुलझे किरदार से,इस संसार मे क्योंकि हर जगह उस कोमल फूल को देखा जाता है कुदृष्टि से, बचा कर दुनिया तथा इस माया-जाल से फिर भी ना बच पायी अपने ही समाज के अंधविश्वासों से।
शिक्षा जगत में नियमों का पालन हो ,घर की बिटिया ना लिखे पढ़े ऐसी घेराबंदी हो,घर की बेटी मॉडर्न पहनावा ना अनुसरण करे, अनगिनत नियमों से फिर उसको रोका गया ,हर उसकी एक जिद्द पर टोका गया ,फिर भी उसका होंसला पस्त नही हुआ और निडर वो लक्ष्य के प्रति सजग हो निभाने लगी किरदार अपना ,समय था अब शादी का नये रिस्ते नातो का फिर विपदा में नारी थी नये घर नये नियमों की आफत जो आनी थी।
फिर विपदा से नारी आज गिरी हुई थी।
हाथों की मेंहदी सुख ना पायी उसकी, नियमों की शब्दावली उसको गिनवाई
फिर से उस बेटी को विपदा ने घेरा था ,
सूझ बूझ उसके शिक्षा की आज अलख इस परिवार में जगाएगी ,उसके बचपन का बलिदान आज काम जो आएगा ,कर प्रचार परिवार में शिक्षा का आज ये बेटी संस्कारों की अलख जगायेगी एवम् खुद की दूरदर्शी सोच से इन विपदाओं को तार लगायेगी।
हार हजार पल खुद के सपनो को दो परिवारों का उद्धार वो करेगी। नारी की विपदा ही एक दिन उसकी पहचान बनेगी, जग दुनिया की रीत प्रीत को अपनी प्रचंड ललकार से विजय पताका फेरेगी।
नारी ही अंततः परिवार का नाम रोशन करेगी ।।
"शिक्षा की अलख जगानी है
बेटी को विद्यालय जाना है।
पढ़कर नाम कमाना है
परिवार का मान बढ़ाना है।।"