स्वयंनाशी ------------
स्वयंनाशी ------------
स्वयंनाशी
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शिव तांडव का रूप नया यह
आपदा का स्वरूप नया यह
तबाही के दृश्य, ईश्वरीय प्रकोप है
मानवी भूलों का प्रतिरूप नया यह.
मौसमी बारिश में ऐसी बर्बादी कहाँ थी
बाढ़, भूस्खलन जैसी त्रासदी कहाँ थी
मृतक हताहतों से जब हों अधिक
मनुष्य स्वभाव ऐसी जयचन्दी कहाँ थी.
खंजर सीने में खुद भोंक चुके हैं
जंगलों को कंक्रीटों में झोंक बना चुके हैं
भू-ताप वृद्धि के कारण भी हम हैं
इस ताप से क्या हम चौंक चुके हैं?
व्यापारिक कारण प्रधान हो जाये
अतिक्रमणों का संधान हो जाये
पर्यावरण की फिर करते हम हत्या
श्राप का क्यूँकर निदान हो जाये.
ईश्वर पर अब कैसा दोष
जब खोये हमने ख़ुद होश
बो रहें हम, वही काट रहे हैं
किस मतलब अब यह रोष?
संभलो संभालो. अब भी समय है
दशकों उपरांत यह तो तय है
बलिवेदी पर तब देश यह होगा
प्रलय कगार पर इसका भय है.
माँ प्रकृति का आरोप यह होगा
मेरे प्यार को मानव ने भोगा
भक्षक बन मेरा उपयोग किया है
ख़ुद तुमसे तुम्हारा नाश ही होगा.
ख़ुद तुमसे तुम्हारा नाश ही होगा.
ख़ुद तुमसे तुम्हारा नाश ही होगा.
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