सुनहरा हंस
सुनहरा हंस
"प्रणाम महाराज !" बड़े मिठे स्वर में ये शब्द सुनकर, तालाब के किनारे, बर्गद के नीचे ध्यानमग्न साधु ध्यान से बहार आए और अपनी आंखें खोली। उनके समक्ष एक सुनेहरा हंस बड़े विनम्र भाव से खड़ा था। साधु के मुख से आशीर्वचन सहज ही निकल गए। फिर हंस को कुछ असमंजस में देख उन्होंने हंस से पूछा "कोई कष्ट है तुम्हें ?"
अपने मन की व्यथा, ज्ञानी साधु समझ गए हैं ये जानकर हंस की श्रद्धा साधु पर और बढ़ गई। उसकी समस्या का निवारण साधु कर देंगे, इस यकीन के साथ उसने अपनी समस्या साधु को बताई।
"महारज !! मेरा परममित्र कौआ है। यूं तो वो एक उत्तम प्राणी है पर उसे मृत जीवों के शव खाने की बुरी आदत है। मै उसे कई बार मोटी देता हूं खाने के लिए पर उसे वो पसंद ही नहीं आते। उसे तो शव, कीड़े इत्यादि शुद्र चीजें ही पसंद आतीं हैं। आप कृपा करके मुझे उसको समझाने का कोई तरीका बताएं।
साधु ने कुछ मनन के पश्चात हंस से कहा "तुम अगर कौआ बनकर उसे समझोगे तो वो समझ जाएगा। अगर तुम कहो तो एक दिन के लिए मैं तुम्हे कौआ बना सकता हूं।"
"अपने परममित्र की भलाई हेतु मैं कुछ भी कर सकता हूं। आप मुझे एक दिन के लिए कौआ बना दें।" साधु ने " *तथास्तु* " कहा और हंस कौआ बनकर अपने मित्र को समझने के लिए उड़ गया।
दूसरे दिन हंस, जो अब फिर से हंस बन गया था, को साधु के समक्ष उपस्थित हुआ, इस बार व्यथा और भी अधिक थी।
साधु ने पूछा "तुमने अपने मित्र को समझाया ?" हंस बोला "महाराज!! जैसे ही मै कौआ बनकर अपने मित्र के पास पहुंचा तो देखा वो एक मरा हुआ चूहा खा रहा था। उसने मुझे भी चूहा खाने को आमंत्रित किया और मेरा मन भी चूहा खाने को किया और मैंने बड़े चाव से चूहा खाया। कल पूरे दिन मुझे मोती खाने की रुचि ही नही हुई। पूरे दिन मै अपने मित्र के साथ शव ही खोज खोज कर खाता रहा।"
साधु ने हंस की बात को बीच मे ही काटते हुए कहा "ऐसा इसलिए हुआ कि कल तुम कौए थे, तो तुम्हारी रुचि भी कौए जैसी ही थी। सृष्टि ने जिसे जैसा बनाया है उसकी रुचि, उसके विचार वैसे ही होंगे। जो जैसा है, वैसा उसे स्वीकार करो। दूसरों को बदलने की चेस्टा वर्थ है।"
हंस ने, ये समझ देने के लिए साधु के प्रति कृतज्ञ भाव व्यक्त करते हुए उन्हें वंदन किया और उड़ गया।
