Rahul S. Chandel

Others

5.0  

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Spiritual Impact On Human

Spiritual Impact On Human

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धार्मिक विचारों और नीतियों का भी इंसान के स्वभाव पर गहरा असर पड़ता है। और उसकी वजह से लोगों का जीवन प्रभावित होता है। ज्यादातर सभी मजहबों में लोगो को वो सभी नियम बताए जाते है जिनसे उनके नैतिक मूल्यों का विकास हो सके। कुछ नियम समाज ने तो स्वीकार कर लिए लेकिन मानव स्वभाव के लिए वो आज भी अस्वभाविक है ,जैसे झूठ बोलना, पूर्ण शाकाहारी होना, संगीत का परित्याग, कर्ज और ब्याज न लेना, दूसरों के लिए जीना इत्यादि। व्यक्ति इन नियमो को मनाने के लिए बाध्य नहीं है लेकिन समाज में अपनी छवि को अच्छी बनाये रखने के लिए इन सभी नियमों का पालन करता है। वास्तव में मनुष्य एक जीव है जो अन्य जीवित प्राणियों जैसे शेर, हाथी, गाय, कुत्ते की तरह ही है। और हर जीवित प्राणी के अंदर कुछ स्वाभाविक लक्षण होते है जैसे झूठ बोलना, काम, क्रोध, लालच, घमंड, स्वार्थ, ममता, आस्था, चालाकी इत्यादि। कोई भी व्यक्ति दुनिया में इन सभी लक्षणों से बचा नहीं है। लेकिन वह खुल कर कभी ये स्वीकार भी नहीं कर पाया कि उसके अन्दर ये सभी लक्षण हैं ,कथित अच्छे लक्षण तो स्वीकार कर लेता है पर जो बुरे कहे जाते है उनको नहीं स्वीकार करता, कारण समाज का डर है। उसको लगता है कि लोग उसको गलत और बुरा व्यक्ति समझेगे। और इस कारण समाज ने ऐसे लोगो की पीढ़ी को विकसित किया जो दोहरे स्वभाव की है। वो मन में तो हर कथित बुराइ को जरूरी समझता है लेकिन समाज मे एक दोमुंहा रवैया लेकर रहता है। मजहबों ने जो सिखाया वो अगर इतना कारगर होता तो आज समाज में एक ही स्वभाव के लोग होते लेकिन कहीं न कहीं ये शिक्षा मानव स्वभाव के ही विपरीत है जिस कारण हमारा दिमाग इसे कभी हमारी मूल आदत के रूप में नहीं स्वीकार कर पाया जो कथित बुराइयां है ये वास्तव में बुराई है ही नहीं, ये व्यक्ति का मूल स्वभाव है। और अगर लोग बाहरी दबाव के कारण इनको स्वीकार नहीं करते हैं तो कई अन्य तरह की समस्या सामने आती है जैसे तनाव, खुल कर अपनी बात न कह पाना, अकेलापन, दोमुंहा स्वभाव, राज खुल जाने का डर आदि। कई लोग अपनी बातों को घुमा फिरा कर कहने को समझदारी मानते हैं और ऐसा करके उनको अहसास होता है कि वो समझदार हैं,लेकिन वास्तविकता में वो उनके मन का डर होता है जिससे जो सीधे नहीं बोल पाते हैं ,उनको अपनी छवि बिगड़ने का भी खतरा होता है। लेकिन वो ये नहीं जानते की वो ऐसा करके आपने मूल स्वभाव का त्याग कर रहे हैं अपनी जरूरतों को पूरा करना और आपने हितो के लिए जीने को मजहबों में स्वार्थी कहा जा सकता है लेकिन ये स्वार्थ नहीं स्वप्रेम है और स्वयं से प्रेम करना मानव स्वाभव है हर जीव को खुद के भोजन पानी कपड़े की व्यवस्था खुद करनी होती है इसके लिए संसार मे कोई देवदूत की नियुक्ति नहीं की गई है। कई बार देखा जाता है कि कुछ लोग जरूरत से ज्यादा अच्छे दिखते हैं सबकी मदद करना, हर बात को साबित करना, खुद किसी बहस में न पड़ना जैसे लक्षणों को परफेक्ट की निशानी मानते हैं। लेकिन बहस और बातचीत में अंतर होता है। जो लोग बिना बात किये खुद की ही गलती मान कर बात शांत कर देते हैं और एक समझदार की छवि बनाने की कोशिश करते हैं वो लोग दुनिया के दूसरे लोगो से कटे रहते हैं ,क्योंकि जब तक बात का निष्कर्ष नहीं निकलता है या दूसरे को उसके पीछे का कारण नहीं पता चलता तो वो आपको ही अपराधी मानता है और दोबारा से बात करने से कटता हर व्यक्ति को शुरू से एक वास्तविकता से अलग शिक्षा दी जा रही है और इस काम मे इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी ने बड़ा रोल प्ले किया है। टीवी पर नैतिकता पर आधारित कई सीरियल आते हैं जिनसे उनके जैसे बनाने का दबाव जन्म लेता है और समाज मे वैसा बनाने की एक परंपरा बनने लगती है भले ही वो लक्षण मानव स्वभाब के विपरीत हो। मजहबी आधार पर लोगो की पोशाक और खाना रहना भी निश्चित किया जाता है जबकी व्यक्ति को उसके स्वभाव के आधार पर अपने अनुसार जीवन जीने की आज़ादी होनी चाहिए और जब ऐसा नहीं होता हो एक मतलबी और तनावपूर्ण समाज जन्म लेता है। जिओ क्यों पूरे देश मे सफल हो गया जबकि इतनी सारी टेलीकॉम कंपनिया विफल रही। वजह ये है कि बाकी की सारी कंपनियों ने cdma, 2 जी, 3जी और 4जी के स्पेक्ट्रम ले रखे थे उनको चलाने के लिए अधिक संसाधन और मैनपॉवर चाहिए। जिसके कारण उनके ऊपर खर्च भी अधिक था और सब कुछ चलाने के लिए समय भी देना होता है। वही जिओ ने सिर्फ 4जी के स्पेक्ट्रम लिए और सिर्फ उतना ही बोझ उठाया जितना कि प्रोग्रेसिव बने रहने को जरूरी था जिससे उनके रेट भी कम रहे और रफ्तार भी तेज रही। वो लोग सफल नहीं होते हो अधिक बोझ लेकर चलते है। हम तनाव और अकेलेपन में इसलिए चले जाते है क्योंकि हम बहुत अधिक सूचनाओं और जिम्मेदारियों का बोझ लेकर चल रहे होते हैं, हम ये भूल जाते है कि हम भी एक इंसान हैं और एक वास्तविक स्वभाव में जीने के लिए बने हैं।धर्म जैसी चीजों के अवास्तविक नियमो और सिद्धांतो ने मानव को जिद्दी और अस्वाभाविक बना दिया है। एक तर्क पूर्ण जीवन ही खुशहाल जीवन कि निशानी होता है।



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