संगत का असर
संगत का असर
एक बार एक भंवरे की मित्रता एक गोबरी कीड़े के साथ हो गई, कीड़े ने भंवरे से कहा कि भाई तुम मेरे सबसे अच्छे मित्र हो इस लिये मेरे यहाँ भोजन पर आओ।
अब अगले दिन भंवरा सुबह सुबह तैयार हो गया और अपने बच्चो के साथ गोबरी कीड़े के यहाँ भोजन के लिये पहुँचा। कीड़ा भी उन को देखकर बहुत खुश हुआ।
और सब का आदर करके भोजन परोसा। भोजन में गोबर की गोलियां परोसी गई और कीड़े ने कहा कि खाओ भाई रुक क्यों गए।
भंवरा सोच में पड़ गया कि मैने बुरे का संग किया इस लिये मुझे तो गोबर खाना ही पड़ेगा।
भंवरा ने सोचा की ये मुझे इस का संग करने से मिला और फल भी पाया अब इस को भी मेरे संग का फल मिलना चाहिये।
भंवरा बोला भाई आज तो मैं आप के यहाँ भोजन के लिये आया अब तुम कल मेरे यहाँ आओगे।
अगले दिन कीड़ा तैयार होकर भंवरे के यहाँ पहुँचा, भवरे ने कीड़े को उठा कर गुलाब के फूल में बिठा दिया और रस पिलाया,
कीड़े ने खूब फूलों का रस पीया और मजे किये।
अपने मित्र का धन्यवाद किया और कहा मित्र तुम तो बहुत अच्छी जगह रहते हो और अच्छा खाते हो।
इस के बाद कीड़े ने सोचा क्यों न अब में यहीं रहूँ और यह सोच कर वहीं फूल में बैठा रहा इतने में ही पास के मंदिर का पुजारी आया
और फूल तोड़ कर ले गया और चढ़ा दिया इस को बिहारी जी के चरणों में।
कीड़े को भगवन के दर्शन भी हुए और उनके चरणों में बैठा। इस के बाद सन्ध्या में पुजारी ने सारे फूल इकठ्ठा किये और गंगा जी में छोड़ दिए,
कीड़ा गंगा की लहरों पर लहर रहा था और अपनी किस्मत पर हैरान था कि कितना पूण्य हो गया इतने में ही भंवरा उड़ता हुआ कीड़े के पास आया और बोला कि मित्र अब बताओ क्या हाल है ?
कीड़ा बोला भाई अब जन्म जन्म के पापों से मुक्ति हो चुकी है जहाँ गंगा जी में मरने के बाद अस्थियो को छोड़ा जाता है
वहाँ में जिन्दा ही आ गया हूँ। यह सब मुझे आपकी मित्रता और अच्छी संगत का ही फल मिला है
और ख़ुशी से निहाल हूँ।
आपका धन्यवाद मेरे मित्र जिस को में अपनी जन्नत समझता था वो गन्दगी थी और जो आपकी वजह से मिला ये ही असली स्वर्ग है।
किसी महात्मा ने सही कहा है,
संगत से गुण उपजे, संगत से गुण जाए
लोहा लगा जहाज में, पानी मे उतराय।