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Sakshi Arora

Children Stories

3  

Sakshi Arora

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शराबी...लोग कहते हैं - पार्ट 2

शराबी...लोग कहते हैं - पार्ट 2

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शराब के नशे में खो कर खुद से भागता एक शख्स, एक परेशान माँ और एक मोबाइल नंबर, कल के अंश में हमने इतना ही पढ़ा था। निराशा और नशे भरी उस रात के बाद जब सुबह की दस्तक होती है तो वो हड़बड़ा कर उठता है और सबसे पहले अपना फ़ोन ढूंढने लगता है। जो उम्मीद उसकी रात को टूट चुकी थी आँखों में फिर से उसी उम्मीद को लिए अपना फ़ोन चेक करता है लेकिन रात की तरह उसे निराशा ही हाथ लगती है। सुबह के 9 बज चुके थे, सर मानो फटा जा रहा था लेकिन उसे आदत है इस तरह के दर्द की। माँ हर रोज़ की तरह उसके लिए नाश्ता बनाये उसका कमरे से बाहर आने का इंतज़ार कर रही है, माँ को पता है कि वो रोज़ कि तरह आज भी बिना कुछ खाये निकल जायगा। इसलिए नहीं कि उसे देर हो रही है बल्कि इसलिए कि माँ की आँखे जोकि सवालों से भरी हैं वो उनका सामना नहीं कर सकता। 9:45 बजे जनाब अपने कमरे से बाहर निकलते है, देखकर कोई नहीं कह सकता कि ये वही शख्स है जिनके कदम रात को लड़खड़ा रहे थे। आत्मविश्वास से भरपूर, सफ़ेद रंग की तंग कमीज और मैच करती नेवी ब्लू पेंट, हाथो में नौकरी और जिम्मेदारियों के बोझ से भरा बैग। बस एक कमी थी, हाथो में जो टाइटन की महंगी घडी थी वो बंद पड़ चुकी थी, आज से नहीं तक़रीबन 4 सालो से। माँ ने ऊँची और तीखी आवाज़ में कहा "जीत नाश्ता करके जाई" पर उसे तो कहा ही रुकना था बस अपना टिफ़िन उठाया और दबी सी आवाज़ में "ऑफिस च कर लांगा मम्मा" ऐसा कह कर वो अपनी गाडी ले घर से निकल गया। उसे अपनी गाडी से बड़ा प्यार था आखिर उसका दूसरा घर और बार यही तो थी। उसने ऊँची आवाज़ में गाडी में गाना चलाया और अपने बेसुरे अंदाज़ में साथ गुनगुनाने लगा, "मैनु किसे दी लोड नई मैनु मेरे हाल ते छड़ देओ" उसके फ़ोन में सिर्फ एक यही गाना था।

ठीक 10:30 बजे जनाब ऑफिस पहुंचे पूरा 1 घंटा लेट, मैनेजर थे तो कोई कुछ कहता नहीं था पूरे आत्मविश्वास और एक मुस्कराहट के साथ वो रोज़ की तरह अपने सहकर्मियों को "गुड मॉर्निंग" कहते हुए अपने केबिन की तरफ जाने लगा। केबिन में जाकर उसने अपने केबिन में रखी लकड़ी की अलमारी खोली, जो बहुत छोटी थी उसमे बायीं तरफ कुछ काम की फाइल्स रखी थी और दूसरी तरफ 3 डायरी और एक ज्योमेट्री बॉक्स रखा था जोकि काफी पुराना था और एक तरफ से टूटा भी हुआ था। उनमे से उसने काले रंग वाली डायरी को खोला और उसके पन्नो को टटोलने लगा, उसकी उंगलिया एक पन्ने पर ठहर गई, उस पन्ने पर एक तारीख लिखी थी और एक तस्वीर थी। अपनी उंगलियों से उस तस्वीर को वो इस तरह सहला रहा था मानो उसकी सारी ख्वाहिशें उस तस्वीर में अंगड़ाई ले रही हो, उसकी आँखों में एक अजीब सी कशिश उतर आई थी मानो अफ़सोस और सुकून दोनों एक साथ। वो उस तस्वीर को इस तरह निहार रहा था जैसे कोई निराश हो चाँद को देखता है। अनगिनत शिकायतें और सवाल मन में लिए वो देखता रहा। अचानक ही वो उस डायरी को रख देता है और अलमारी बंद कर देता है शायद उसकी आँखों के जज़्बात बिखरने लगे थे और उसे डर था कि कही वो इस सैलाब को नहीं संभाल पायेगा।

ऑफिस में उसका अलग ही रुतबा था एकदम खुशनुमा मिज़ाज़, मज़ाक़िआ अंदाज़, उसके ठहाकों की आवाज़ से पूरा ऑफिस गूंजता था। वही घर में सब उस से बात करने से भी डरते है, उसे घरवालों से कुछ नाराज़गी थी या फिर वो दोहरी ज़िन्दगी जी रहा था? उस डायरी में किसकी तस्वीर थी, क्या ये उसी की तस्वीर थी जिसे वो हर रात फ़ोन करता है? उसने इतना पुराना ज्योमेट्री बॉक्स क्यों संभाल कर रखा है? वो अपने ही आंसुओ और सवालों से क्यों डरता था? जानेंगे आखिरी अंश में। 


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