रावण क्या मां सीता के पिता हैं
रावण क्या मां सीता के पिता हैं
वैशक पक्ष के शुक्ल पक्ष के नवमी तिथि को श्री राम वल्लभ देवी मां सीता का जन्म हुआ था ।इस लिए इस तिथि को जानकी नवमी/सीता नवमी के नाम से जाना जाता है। मां सीता को भूमि का लक्ष्मी अवतार भी माना जाता है। भूमि से उत्पन्न होने के कारण उन्हें “भूमत्मजा” और जनक की पुत्री होने के कारण “जानकी” भी कहा जाता है।
अद्भुत रामायण:
अद्भुत रामायण में माता सीता को रावण और मंदोदरी की पुत्री बताया गया है । अद्भुत रामायण में ऐसा उल्लेख है की, जब रावण कहते है की “जब में भूल वश अपनी पुत्री से प्रणय की इच्छा करूं तब वे मेरे मृत्यु का कारण बने अद्भुत रामायण के अनुसार दत्ताक्करण्य में रिस्मत नाम का एक ब्राह्मण था। वो माता लक्ष्मी को अपनी पुत्री रूप में पाने की कामना से प्रति दिन अग्र भाव से प्रतिदिन एक कलश में दूध के बूंदें समर्पित करता था । रावण, जनक के राजा (मिथिला नरेश)से जलता था क्योंकि मिथिला भी रावण की लंका जितना ही प्रसिद्ध और पराक्रम देश था। रावण ब्राह्मणों और ऋषि से रक्त लेकर मिथिला में छुपाना चाहता था। क्योंकि इसका श्राप मिथिला को लगता हालांकि रावण भी एक ब्राह्मण था लेकिन वे ब्राह्मण और ऋषि से रक्त लेकर रिस्मता ऋषि के अनुपस्थिति में उसी कलश में उन्होंने रक्त डाल दिया और लंका जाकर मंदोदरी को कलश देकर संभाल के रखने को कहा । और वायुविहार चले गए रात में मंदोदरी को प्यास लगने पर मंदोदरी ने कलश में पानी समझ कर पीलिया और कुछ दिनों बाद गर्भवती हो गायी इसलिए घबरा कर रावण से कहा ”की मुझे आपकी गर्जना सुननी है” क्योंकि मंदोदरी जानती थी कि रावण की गर्जना से गर्भपात होते हैं। मंदोदरी की कहने पे रावण ने गर्जन की इस वजह से मंदोदरी का गर्भपात हो गया उसने उस गर्भ को कलश में मिला दिया। और रावण जब कलश के बारे में पूछा तो उन्हें कलश को सौंप दिया । और रावण ने अपने योजना अनुसार उस कलश को जनकपुरी में छिपा दिया । और स्वयं धरती मां ने सीता का लालन पोषण किया।
मिथिला के राजा जनक के राज्य में बरसों से वर्षा नहीं हो रही थी। चिंतित होकर राजा ने जब महर्षियों से सलाह मांगी, उन्होंने उपाय के रूप में बताया की जब महाराज स्वयं हल चलाएंगे तो भगवान इंद्र के कृपा से वर्षा हो सकती है। और ऋषियों के कहे अनुसार जब राजा हल चला रहे थे तो, हल चलाते समय हल एक धातु से टकराया जब राजा जनक ने उस जगह के खुदाई का आदेश दिया तो उसमें मां सीता प्रकट हुई। इस कहानी से ये सिद्ध होता है की माता सीता जनक की अपनी पुत्री नहीं थी ओह तो धरती से प्रकट हुई थी।
महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी रामायण में इसका उल्लेख नहीं है। श्री राम पर १२५ अलग अलग खाता लिखी जा चुकी हैं। रामायण १४ शताब्दी में लिखी गई खता है।
नारगुंद:
नारगुंद के राम मंदिर की छोटी कहानी:
आज नरगूंद में कनक दस सर्किल पदवान केरी के पास के एक मंदिर में राम जी का एक मंदिर है, जहां राम, सीता, लक्ष्मण, तथा भरत की मूर्ति भी आपको देखने मिलेंगे । जो मंदिर सालों से छिपा हुआ था उसे निकाल कर वहां पर मंदिर में मूर्ति यों की ”मूर्ति प्रतिस्थापन ” की गई है। जो देखने में बहुत ही आकर्षक और आनंद मय है।
जहां हर साल राम नवमी, हनुमान जयंती पे जोरों शोरों से पूजा की जाती है।
मंदिर के कुछ तस्वीर:
