परोपकार की भावना
परोपकार की भावना
बचपन की बात है मैं लगभग 10-12 साल का था। गाँव में बहुत बड़ा बाग था और उस समय आम के फल बागो में खूब लगे थे। सुबह जल्दी उठकर सभी बच्चे बागो में आम को बिनने जाते थे और मै भी उन्ही में से एक था। सुबह-सुबह जल्दी उठा और बागो में पहुँच गया। उस दिन ढेर सारे पके आम प्राप्त हुए थे, तो सोचा भूख लगी है मंजन (दातून) करके दो चार आम खा लेता हूँ। मंजन करने एक टयूबल पर गया जहाँ हौद बना हुआ था। मंजन कर ही रहा था तभी ट्यूबल वाले ने कहा कि दो चार मुझे भी दे दो, मैने उन्हें साफ-साफ मना कर दिया। मंजन करके मैं मुँह धुलने हौद के पास गया और मुँह धुला। मुँह धुलने के बाद भूख तो लगी थी और प्यास भी। पानी पीने लगा जल्दी - जल्दी तभी मुझे चक्कर आ गया और मैं बेहोश होकर हौद में गिर गया। ट्यूबल वाले ने जब देखा तो वह दौड़कर आये और मुझे हौद से निकालकर होश आने तक तरकीब में लगे रहे।
थोड़ी देर बात होश आया तो उन्होंने मुझे बताया कि मैं हौद में गिर गया था और उन्होंने बचाया। मेरी आँखों से आँसू छलक रहे थे ये सोचकर नहीं कि मैं बेहोश हो गया था और हौद में गिर गया था बल्कि ये सोचकर कि जिसको मैने आम देने से इंकार कर दिया था फिर भी उन्होंने मेरी जान बचायी। मैं उठा फिर मुँह साफ किया और बड़े आदर के साथ उन्हें कई आम देने लगा। वह आश्चर्य होकर मेरी तरफ देखे और मना कर दिया। मेरे बार - बार निवेदन करने पर फिर उन्होंने आम लिया।
मैं जब वहाँ से चला तो मैने दिल से ठान लिया कि जहाँ भी मेरी जरूरत पड़ेगी मैं परोपकार अवश्य करूँगा। जीवन अनमोल है और किसी के जिन्दगी में थोड़ी सी खुशी दोगे परोपकार या किसी भी प्रकार से यकीन मानिए आपकी ख़ुशियाँ भी दोगुनी।