प्रेम या मोह?
प्रेम या मोह?


किसी के पीछे इतना नहीं भागा जाता,
कि पैरों से ज़्यादा दिल थक जाए,
कि चाहत की मिट्टी इतनी गीली हो जाए,
कि उम्मीदों के बीज भी गल जाएं।
जो ठहर जाए, वही साथ चलने के क़ाबिल होता है,
जो हवा हो, उसे मुट्ठी में रोका नहीं जाता।
पंछी को कंधे पर बैठने का न्योता दे सकते हैं,
मगर परों को समेट लेने की जिद
प्रेम नहीं, बस मोह कहलाता है।
प्रेम मांगता है खुला आसमां,
ना कि मुट्ठी में क़ैद होने की चाह।
जो जल में छवि बनकर ठहर जाए,
उसे देख लो, छूना मत,
जो बादल बन बरस जाए,
उसे सहेज लो, रोकना मत।
इतना नहीं भागा जाता,
कि राहें ही रूठ जाएं…
जो लौटना चाहे, वह लौटेगा,
जो नहीं, वह किसी और आंगन में फूल बन खिलेगा।
और प्रेम का अर्थ भी तो यही है न?
जो जाए, उसे जाने दो…
जो रहे, उसे संभालो,
मगर किसी को भी बंदिशों में मत पालो।