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Nirupa Kumari

Others

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Nirupa Kumari

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फ़ुरसत

फ़ुरसत

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आज शाम की चाय पीते पीते ये अजीब सी शांति पा के दोनों पति पत्नी ऋषि और प्रिया बिल्कुल असहज से हो उठे, दोनों के आंखों में आंसुओं कि बूंदें अचानक ही छलक पड़ी


एक दूसरे की आंखों में देखते ही दोनों अपने अपने आंसुओं को छिपाने की नाकामयाब कोशिश करने लगे..,


प्रिया बोली देखिए ना अपना आंगन आज कितना शांत लग रहा है ना ,अजीब सी है ये शांति…मुझे बिल्कुल अच्छी नहीं लग रही, कल तक ये आंगन हमारी बेटियों की शरारत से गूंजता रहता था, उनकी हंसी ठिठोली, स्कूल जाने की भागम भाग, उनकी हर जरूरत के लिए हर समय हम दोनों भी कितना उलझे रहते थे ना, अभी प्रोजेक्ट submit करना है, अभी ये exam, तो ये फॉर्म भरना है, इस activity class तो कभी उनकी performance की तैयारी… और त्योहारों की धूम तो अलग ही होती थी , कितनी फरमाइशें और फिर हमारी भी ख्वाहिशें… इन सब बातों में समय कितनी जल्दी निकल गया कि पता ही नहीं चला कि हमारी दोनों नन्ही नन्ही बेटियां कब बड़ी हो गईं।


मीनू(बड़ी बेटी) की जॉब लगी तो हमें लगा था एक जिम्मेदारी तो पूरी हुई, बेटी को स्वाबलंबी बनता देख तो हम सभी कितना खुश हुए थे, है ना

ऋषि ने कहा, हां सच कहती हो, पर ना जाने क्यों बेटियों को विदा करना पड़ता है, किस पत्थर दिल ने ये रीत बनाई होगी….??

फिर भी मीनू के जाने के बाद निशु (छोटी बेटी) थी हमारे साथ तो दिल को कुछ तो तसल्ली थी,इतना सुनापन ना था कभी अपने आंगन में,


प्रिया बोली – हां इतने दिन शादी की भाग दौड़ , खर्चे का इंतजाम, मेहमानों की भरमार, शॉपिंग, सजावट, रस्मों और गीत संगीत में इतने उलझे थे सब, चारों तरफ शोर ही शोर था, और अब बस हम दोनों अकेले बैठे … अपने आंसुओं से चाय को नमकीन बना रहे हैं….

कहते कहते प्रिया फूट फूट के रोने लगी, ऋषि की आंखें भी नम थीं, फिर दोनों ने एक दूसरे को तसल्ली देते हुए संभाला।


फिर ऋषि ने प्रिया के आंसुओं को पोंछते हुए कहा, रोती क्यों हो, बच्चे बड़े हो गए हैं उन्हें अपनी ज़िन्दगी बनाने दो, एन्जॉय करने दो, उनके सपने पूरे करने दो, और हम अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश में लगते हैं।

प्रिया बोली, अब इस उम्र में कौन से सपने पूरे करेंगे?


ऋषि बोला, क्यूं तुम्हें तो हमेशा से अपना बिजनेस शुरू करना था, इतने दिन तो बच्चों की जरूरतों को पूरा करने से फ़ुरसत नहीं मिली की अपना सोचें, पर अब तो फ़ुरसत ही फ़ुरसत है ना, तो इस समय का सदुपयोग करते हैं, चलो अपना काम शुरू करते हैं, क्या कहती हो?

प्रिया बोली, सच ऋषि क्या ऐसा हो सकता है, हम अपना business start करेंगे???

Idea तो बहुत अच्छा है, इससे हम इंगेज भी रहेंगे और financially strong भी, चलो सच में शुरू करते हैं

तभी प्रिया के फोन की घंटी बजती है, मीनू का फोन है, प्रिया कहते हुए फोन उठाती है।


मीनू, कैसी है मेरी बेटी प्रिया के कहते ही मीनू कहती है, मां I need you, जल्दी आ जाओ ना मेरे पास, मैं प्रेगनेंट हूं मां, मुझे बहुत घबराहट हो रही है, तबीयत भी खराब है, तुम और पापा ही मुझे संभाल सकती हो , please आ जाओ।

प्रिया खुशी से कहती है, अरे ये तो खुशी की बात है, हम जरूर आयेंगे तुम्हारा ख्याल रखने, तुम जरा भी मत घबराओ, मां पापा हैं ना, सब ठीक हो जाएगा।

मीनू को सारी हिदायत दे कर की ऐसी हालत में क्या करना है क्या नहीं प्रिया फोन रख देती है।


ऋषि प्रिया को देखता है, प्रिया ऋषि को देख के मुस्कुराते हुए कहती है, चलो ऋषि जी सपनों की पोटली फिर से बांध के कोने में रख दो, और नाना बनने की जिम्मेदारी संभाल लो।

ऋषि कहता है चलो फिर…तैयारी करो, बिजनेस की फ़ुरसत में सोचेंगे, हम्म।

सच माता पिता अपने लिए या अपने सपनों के लिए कहां जी पाते हैं, वो तो उम्र भर बच्चों की जरूरतों और जिम्मेदारियों को संभालने में ही लगे रह जाते हैं, इसलिए माता पिता का कर्ज कोई कभी उतार नहीं सकता।


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