पछतावा
पछतावा
एक अध्यापक सरकारी विद्यालय में पढ़ाते थे । वह अपने बच्चों से बहुत प्यार करते थे। कभी कोई बच्चा गलती कर देता तब वह उनको प्यार से समझाते थे। अगर कोई बात ज्यादा आगे पहुंच जाती थी तब वह बच्चों को डराने के लिए उनकी पिटाई भी कर देते थे। सभी बच्चे अध्यापक से इतना प्यार करते थे कि वह उनके द्वारा की गई पिटाई भी सहन कर लेते थे।
एक बार की बात है उन अध्यापक की ड्यूटी कहीं बाहर लग गई और उनके स्थान पर दूसरे अध्यापक जो कि विद्यालय में नए-नए आए थे वह पढ़ाने लगे एक दिन उन्होंने किसी गलती पर एक बच्चे की पिटाई कर दी फिर क्या था वह बच्चा अपने घर से अपने माता पिता को ले आया आते ही उन्होंने अध्यापक पर चढ़ाई कर दी और मामला काफी बढ़ गया कुछ लोगों को बीच-बचाव करवाना पड़ा खैर मामला शांत हो गया। वापस आने के बाद जब यह बात उनके अध्यापक को पता चली तब उन्हें बहुत दुख हुआ उन्होंने सभी बच्चों को अपने पास बुलाया और एक कहानी सुनाने लगे कहानी इस प्रकार थी-
एक बार एक पत्थर और एक मूर्ति में बहस हो गई पत्थर ने कहा तुम भी पहाड़ों को काटकर बनी हो और मैं भी तुम्हें सभी लोग पूजते हैं और मुझे ठोकर मारते हैं ऐसा क्यों है ?
तब उस मूर्ति ने एक बहुत सुंदर जवाब दिया वह बोली मैं भी पत्थर से बनी हूँ। परंतु मुझ में और तुममे यही अंतर है कि जब मुझे पहाड़ से काट कर बनाया जा रहा था तब मेरे ऊपर बहुत चोट मारी गई और मैं वह चोट सहन करती रही और उस चोट को सहन करके मुझे इतना सुंदर रूप मिला और मैं आज पूजी जा रही हूँ ।परंतु जब तुम पर चोट मारी गई तुम सहन नहीं कर पाए और टूट कर दूर जा गिरे जिसकी वजह से आज तक ठोकर खा रहे हो। तब अध्यापक ने बच्चों को समझाया मेरी तरह यह भी आपके गुरु हैं आप इनके साथ भी वही व्यवहार करो जो मेरे साथ करते हो गुरु हमेशा बच्चों का भला ही चाहते हैं जो बच्चे जरा सी पिटाई होते ही अपने घर वालों को बुला कर लाए वह उस पत्थर के समान है जो मार सहन नहीं कर पाया और पत्थर ही रह गया और जो बच्चे गुरु की मार सहन कर लेते हैं वह उस मूर्ति के समान पूजे जाते हैं और आगे चलकर कामयाबी की मंजिल को छू लेते हैं।
इस कहानी को सुनाने के बाद अध्यापक ने बच्चों से कहा बताओ तुम मूर्ति बनना चाहते हो या पत्थर सभी बच्चों ने जवाब में मूर्ति कहां अब वह बच्चा जिस ने शिकायत की थी सब समझ गया और अध्यापक के चरण पकड़ लिए क्षमा याचना करने लगा उसे अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ।
निष्कर्ष
यदि हमारे गुरु हमें कुछ बनाने के लिए हमें डांटते या पिटाई करते हैं या हमारे साथ कठोर व्यवहार करते हैं तो हमें बुरा नहीं मानना चाहिए वह हमारे अच्छे के लिए ही यह सब करते हैं वह हमें हीरा बनाना चाहते हैं पत्थर नहीं।