पछतावा
पछतावा
दिल की धड़कन तेज़ हो रही थी। पर वो चलते जा रहा था। कंधे पर किताबों से भरा बस्ता भी कुछ महसूस नहीं हो रहा था। यह उसके लिये अजीब था, क्योंकि ऐसा कभी नहीं हुआ कि वो स्कूल से घर नहीं गया, किसी को कुछ बताया भी नहीं, बस सोच लिया कि वो आज घर नहीं जाएगा।
"मैं नहीं जाऊँगा, कल गणित का पेपर है। मुझे नहीं आती यह, गणित बड़ी मुश्किल होती है। फॉर्मूले याद कर भी लो तो उनको लागू नहीं कर पाता ठीक से। मम्मी पापा कितनी उम्मीद करते हैं, और एक मैं हूँ। मम्मी ने टिप्स भी दिये। पापा कह रहे थे कि अब की बार 60% से काम नहीं चलेगा, 80% तो चाहिए ही चाहिए। अंग्रेजी और बाकी विषय तो ठीक है ,पर गणित तो जितना सुलझाता हूँ, उतनी ऊलझती है।"
चलते चलते कितना दूर निकल आया था वो। शाम हो गई थी। अनदेखा रास्ता था। पानी भी खत्म हो गया था, भूख भी लग रही थी। पिछले पर उसकी माँ ने घड़ी दिलवाई थी, उसी की पसंद की। देखा तो चार बजे गए थे। "नहीं मुझे घर नहीं जाना, मैं कोशिश करके भी इतने नम्बर नहीं ला सकता, फ़िर उनका कैसे सामना करूँगा? वो डांटेंगे सो अलग। बहुत बच्चे घर छोड़कर चले जाते हैं, आत्महत्या भी कर लेते हैं। कुछ दिन दोनो परेशान होंगे फिर सब ठीक हो जाएगा। वंशिका जीजी गणित में अच्छी है, वो मम्मी पापा को बहुत पसंद है। मैं कुछ लायक नहीं।"
अचानक पैर पत्थर से टकरा गया, एक मौलवी बाबा ने उठाया।
वो डर गया, "यह कौन हैं?"
"बेटा तुम यहाँ क्या कर रहे हो? घर कहाँ है तुम्हारा?"
मौलवी ने बड़े ही प्यार से पूछा। रोते रोते सारी बात बता दी वंश ने।
"बेटा, माँ बाप हमारे अच्छे के लिए कहते हैं, ऐसा करोगे तो उन्हे कितना दुख होगा, उनकी ज़िंदगी हो तुम, ख़ुदा की रहमत हो, वो कितने परेशान हो रहे होंगे।"
"सही तो कह रहे हैं यह बाबा, मैं भी कुछ भी करता हूँ, भूख भी लग रही है, माँ ने छोले भटुरे बनाये होंगें। मैं उनको समझाऊँगा तो सब ठीक हो जाएगा पर उनको दुखी नहीं करूँगा। फिर मुझे बड़ा होकर अध्यापक भी तो बनना है।"
उसकी मासूम सी आँखें पास ही एक टेलीफ़ोन बूथ पर पड़ी। जेब में से पैसे निकाले जो माँ ने आइसक्रीम के लिये दिये थे,और पापा का नंबर मिला दिया।
"पापा"
"वंश तुम ठीक हो ना? कहाँ से बोल रहे हो? क्या हुआ है?"
एक ही सांस में इतने सवाल, सुनते ही उसे महसूस हो गया की वो बहुत चिंतित थे।
"वो मैं...वो मैं "मौलवी ने फ़ोन लिया और उन्हे समझाया कि उनका बेटा सुरक्षित है,और वहां का रास्ता विस्तार से समझाया। कुछ ही देर में वंश के माता पिता आ पहुँचे। दोनों ने उसे गले लगा लिया।
"मुझे माफ़ कर दो पापा, मुझे माफ़ कर दो,
मैं आगे से ऐसा कुछ भी नहीं करूँगा।"
वंश रोते रोते कह रहा था।
मौलवी ने दोनो को समझाया ,"अपनी ख्वाइशों का बोझ बच्चों पर इतना भी ना डालें कि यह नन्हे बालक जो आपके गुलशन के फूल हैं कुम्हला जाएँ। सारे फूल एक से नहीं होते ,सब अलग तरह के,किसी में खुशबू, किसी में रंग ,कोई बस लहलहाते हुए आपके बाग को हरा भरा करते हैं,बाकी आप लोग खुद समझदार हैं।"
"हम समझ गये,आज कुछ हो जाता तो हम अपने आप को माफ़ नहीं कर पाते। आप का बहुत बहुत शुक्रिया" माँ का गला भर आया।
वंश की आँखें बूथ के पास खड़े मौलवी को देख रही हूँ, ओर वो उनको देखते हुए गाड़ी में जा बैठा। आज बहुत कुछ होने से बच गया था और आज का दिन बहुत कुछ सिखा गया था।
