पापा कब आओगे?

पापा कब आओगे?

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हरियाणा में एक गाँव के शासकीय विद्यालय की कक्षा तीन के बच्चों को कक्षा अध्यापिका जो अन्य विषयों के अलावा हिन्दी भी पढ़ाती थी, कक्षा के बच्चों से कहा “सभी बच्चे अपनी-अपनी रफ़ कॉपी में 40 मिनट के अंदर अपने-अपने पिताजी को एक पत्र लिखो जिसमें उन्हें अपनी पढ़ाई की प्रगति से अवगत करो।”

लांस नायक दीपसिंह, जिसकी ड्यूटी उत्तरी कश्मीर के उरी सेक्टर में थी, उसकी बेटी प्रिया ने पत्र लिखा-

आदरणीय पापा,

चरणस्पर्श

मैं जब छोटी थी और आपसे फ़ोन पर बात होती थी तो आपको हमेशा एक ही बात बोलती थी "पापा आप कब आ रहे हो… आपकी बहुत याद आ रही है। मैं अब आपको कभी नहीं कहूँगी कि पापा आप कब आ रहे हो। मुझे मालूम हो गया है कि देश सेवा से बढ़कर कोई बड़ी सेवा नहीं होती। मुझे आपकी बेटी होने पर गर्व है। मुझे क्या, आप पर तो पूरे देश को नाज़ है। पापा, मेरी पढ़ाई अच्छी चल रही है। मैं खूब पढ़ाई कर रही हूँ। मैं बड़ी होकर डॉक्टर बनूँगी और आपके समान ही देश सेवा करूँगी। पापा, आप छुट्टी लेकर तब ही आना जब हमारा पूरा कश्मीर आंतकियों से मुक्त हो जाए। पापा, आप जब कभी भी छुट्टी लेकर घर आओ तो मेरे लिए खिलौने मत लाना। यहाँ दादाजी, मम्मी, चाची, रिंकू भैया, संदीप भैया सभी लोग ठीक है। आप यहाँ की चिंता मत करना। अब मैं बड़ी हो गई हूँ।  

आपकी लाडली बिटिया,

प्रिया

प्रिया ने पत्र लिख कर मुस्कराते हुए अपनी कॉपी अध्यापिका को दी। अध्यापिका ने प्रिया द्वारा लिखे गये पत्र को पढ़ा और अध्यापिका की आँखों से झर-झर आँसू गिरने लगे। अध्यापिका ने प्रिया की ओर देखा प्रिया अभी भी मुस्करा रही थी।



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