नरकवासी मेरा बाप
नरकवासी मेरा बाप
एक बड़ा सा मकान है जिसे लोग आदतन हवेली कहते हैं। वरांडे में एक तखत लगा है जिस पर आज भी हजूर वैसे ही बैठे हैं जैसे सदियों से बाप-दादा बैठते चले आऐ हैं। वे भी हजूर थे और ये भी हजूर ही हैं। वे सुबह से शाम तक जितना संभव होता है, अपना दरबार रौशन किये रहते हैं, हजूर का और कोई काम नहीं है। हजूर के आसपास दो-चार हजूरिये, जिन्हें इधर हज्जू कहने का चलन है, हमेशा पीकदान लिये खड़े रहते हैं , पता नहीं किस तरफ वे पाउच की पीक थूकने के लिये मुँह उठा दें ।
‘‘ हजूर, उधर दलित बस्ती में परसों हरिया मर गया था .....’’ हज्जू ने बताया ।
‘‘ ....!! ..... तो !? ’’ हजूर ने पीक की रक्षा करते हुए भरा मुँह जरा ऊँचा करके पूछा ।
‘‘ आज उसका फोटू छपा है अखबार में । ... लिख्खा है उसका स्वर्गवास हो गया है ! ..... स्वर्गवासी हरिराम लिखा है हजूर !!’’ गुर्गे ने फुसफुसा कर बताया ।
‘‘ ...!! ... तो ?!’’ हजूर कुछ समझे नहीं ।
‘‘ हजूर , आपके पुरखे वहाँ , स्वर्ग में बिराजे हैं । पंडितों, सेठ-साहुकारों को स्वर्ग मिलता है । लेकिन जिन्हें मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ना मना है वो भला स्वर्ग की सीढ़ियाँ कैसे चढ़ सकता है !! ?’’
‘‘ हाँ, ये तो गलत है ! ’’ आखिर हजूर ने पीक थूक कर अपने को पीक-प्रेम से मुक्त किया, मतलब वे गंभीर हुऐ , बोले - ‘‘ इनकी हिम्मत बढ़ती ही जा रही है , स्कूलों में घुसे, नौकरियों में घुसे .... मतदान केन्द्रों में घुसे और अब स्वर्ग में भी ! ’’
‘‘ बड़े हजूर और बड़ी मालकिन तो इनकी छुई लकड़ी को भी गंगाजल से घुलवा कर चूल्हा जलवाती थीं , पता नहीं अब स्वर्ग में उनका क्या हाल होगा । ’’ हज्जू ने आग देख कर थोड़ा घी डाला ।
हजूर कुछ देर सोचते रहे, फिर बोले - ’’ पहले पुछवाओ सुकला वकीलवे से, स्वर्ग में आरक्षण है क्या ? ’’ सुनते ही एक हजूरिया फोन में उँगलियाँ घुमाने लगा ।
‘‘ आज़ादी ने तो पूरा सिस्टम खराब कर दिया हजूर, इससे तो अंग्रेजों का राज अच्छा था । वो हम लोगों के मामले में कोई दखल नहीं देते थे । ... पंडिज्जी को बुलवा लें हजूर ... राय-मसविरा हो जाऐगा ? स्वर्ग के बारे में उनके बोल-बचन पक्के हैं । ’’ दूसरा हज्जू बोला ।
‘‘ एई .... जारे ... पंडितवे को बुला ला । ’’ हजूर ने हाँक लगाई । इस बीच फोन पर बात करने वाला सामने उपस्थित हो गया ।
‘‘ क्या बोला वकीलवा ? ’’
‘‘ हजूर वकील बोले हैं कि स्वर्ग के बारे में उनको मालूम नहीं है लेकिन महास्वर्ग मराठी मानुस का है , .... एकदम पक्के में । आप बात कर लीजिये । ’’
हजूर के माथे पर जैसे भाटा पड़ा । समझ में नहीं आता आजकल किसका क्या है । क्या बात करते ! फिर भी फोन लिया - ‘‘ हलो वकील साब , ये क्या बात है भई ! आपके पास केस सुलझाने के लिये रेफर करते हैं तो आप उसे और उलझा देते हैं ! ... हमने आपसे सिर्फ इतना पूछा कि स्वर्ग में आरक्षण है क्या और आपने ..... !!
‘‘ आरक्षण बिहारी स्वर्ग में होगा, हिन्दी स्वर्ग में भी हो सकता है । मुझे पता नहीं .... पर महास्वर्ग केवल मराठियों के लिये है । और महास्वर्ग के दरवाजे पर बैठे आपले साहब ने साफ-साफ कहा है कि महास्वर्ग में वो किसीको घुसने नहीं देंगे । अगर कोई कोशिश करेगा तो मरे हुओं को वे और मारेंगे । ’’ सुन कर हजूर ने फोन बंद कर दिया, उनकी चिंता और बढ़ गई । बगलिये हज्जू से पूछा - ‘‘ जरा तलाश करो कि हरिया स्वर्ग में गया है या महास्वर्ग में । ’’
‘‘ स्वर्ग में ही गया होगा हजूर , उसे मराठी तो आती नहीं थी । ... उसी स्वर्ग में आपके पुरखे हैं हजूर । ’’ बगलिया हज्जू बोला ।
‘‘ इसी बात की तो चिंता है । आजादी के बाद कुछ भी सही नहीं हो रहा है देश में । जिन्हें नरक में होना चाहिये वो बिना किसी से पूछे स्वर्गवासी हो रहे हैं । कोई नियम कायदा ही नहीं है । .... अबे वो पंडितवा नहीं आया अभी तक ? ’’
‘‘ आते ही होंगे हजूर .... वो आ रहे हैं धोती सँहालते । ’’
पंडितजी ने आते ही उपस्थिति दर्ज करवाई, ‘‘ पालागी हजूर, .... सदा सुखी रहें हजूर , ....... हुकम सरकार । ’’
‘‘ अरे पंडिजी ... , ये तो बताओं कि स्वर्ग में कौन जा सकता है ?’’ हजूर ने सीधा सवाल किया ।
‘‘ शास्त्रों में लिखा है कि धरम-करम करने वाला जा सकता है, जो अंत समय में नारायण-नारायण बोले वह भी जा सकता है, ब्राहम्णों को दान देने वाला जाता ही है, ... और फिर आपकी मर्जी है हजूर जिसको चाहें भेज सकते हैं । ’’ पंडित ने मामला ताड़ने के लिये एक-दो टुकड़ा जानकारी दी ।
‘‘ तुम मरोगे तो कहाँ जाओगे ? ’’ हजूर ने नया पाउच फाड़ते हुए पूछा ।
‘‘ आप अगर राजी हुए तो स्वर्ग में ही जाऐंगे हजूर । ’’ पंडित समझ गया कि मामला कुछ गड़बड़ है ।
‘‘ पंडिजी, पहले तो आप लोगों की मरजी से स्वर्ग जाते थे लोग ! ’’
‘‘ वो जमाना और था, अब लोकतंत्र है, आपका राज है हजूर । ’’
‘‘ सेठ, साहूकार, दल्ले-गल्ले ? ’’
‘‘ वो भी स्वर्ग जा सकते हैं , अगर कोशिश करें तो । ’’
‘‘ और कौन जा सकता है , .... वो दलित बस्ती वाले ? ’’ हजूर मुद्दे पर आए ।
‘‘ जिन्हें जीते जी कुछ नहीं मिला उन्हें भला मरने के बाद क्या मिलेगा । ’’ पंडित ने बात लगभग साफ की ।
हजूर ने बाँऐ तरफ खड़े अपने बाँऐ हाथ हज्जू को आदेश दिया - ‘‘ बता रे ... क्या बात है । ’’ आदेश मिलते ही उसने मुँह खोला - ‘‘ वो हरिया है ना .... जो पिछले हप्ते मरा है .... आज अखबार में उसका फोटू छपा है .... लिखा है स्वर्गीय हरिराम .... ’’
पंडित ने एक नज़र हजूर पर डाली और मामले की नब्ज और नजाकत का अंदाजा लगाया, फिर बोले - ‘‘ लिखने से क्या होता है हजूर । नाम के आगे थानेदार लिख लेने से थानेदारी मिल तो नहीं जाती है । ’’
‘‘ लेकिन कोई तो नियम होना चाहिये साफ-साफ कि कौन स्वर्ग जा सकता है और कौन नहीं । स्वर्ग न हुआ जनता चौक हो गया @#$$%% कि जिसकी मरजी हुई मुँह उठा कर चल दिया ! ..... जा रे ...... बुला उस हरिया के लौंड़े को ... साला स्वर्गवासी की औलाद ..... । ’’
एक हज्जू बाहर की ओर तत्परता से चल देता है ।
‘‘ जाने दीजिये हजूर , जमाना खराब है । ’’ पंडित ने धीरे से समझाया ।
‘‘ जाने कैसे दें !! आज एक स्वर्गवासी हुआ है , कल को पूरा दलित मोहल्ला स्वर्ग में घुसा चला जाएगा । एक बार आदत बिगड़ गई तो सम्हालना मुश्किल होगा । मुंडेर का पीपल जितनी जल्दी उखाड़ दो उतना अच्छा है । हमलोग तुमसे जमाने भर का कर्मकांड अपने पुरखों की शांति के लिये ही नहीं कराते हैं ? और तुम ही कह रहे हो कि जाने दीजिये !! ..... तुम इतनी भी तमीज नहीं सिखा पाए इन लोगों को ! यही घुसे आऐंगे स्वर्ग में तो हम कहाँ जाऐंगे ... और तुम भी कहाँ जाओगे ? अऐं ? ’’
पंडित कुछ नहीं बोले, बोलते भी क्या । फिर भी बुदबुदाया - ‘‘ जब से लोग पढ़लिख गए हैं हमारी कहाँ सुनते हैं हजूर । पहले इनके अक्षर ज्ञान पर पाबंदी थी तो सब ठीक था । ’’
‘‘ पहले भी कभी गऐ हैं क्या ये लोग .... स्वर्ग ? ’’
‘‘ दिल्ली-यूपी के बड़े नेताओं के नाम के आगे भी स्वर्गीय लिखा होता है । ’’ पंडित ने याद दिलाया ।
‘‘ बड़े नेता !! बड़े नेता बनने के बाद भी काग़ज पर तो वे दलित ही होते हैं । पार्टी कार्यालय में जा कर देख लेना उनके रजिस्टर में बड़े नेता जात से पहचाने जाते हैं । ’’
‘‘ कुछ दलित संत-वंत भी गए होंगे लेकिन वो भी वहाँ जा कर आपके पुरखों की हजामत ही बनाते होंगे । ’’ पंडित ने गंभीरता थोड़ी कम करना चाही ।
‘‘ तुम तो कहते थे कि स्वर्ग में किसी की दाढ़ी नहीं बढ़ती है, किसी को टट्टी-पेशाब नहीं होती है, किसीको नहाने-धोने की जरुरत नहीं पड़ती है, न कोई बीमार पड़ता है और न ही कोई बूढ़ा होता है !! ’’
‘‘ सही है हजूर , स्वर्ग में आत्माऐं देवताओं के साथ अप्सराओं का नृत्य देखते , सुरापान करते हुए पड़ी रहती हैं, बस। ’’
‘‘ पड़ी रहती हैं ! मतलब ? ’’
‘‘ मतलब विश्राम करती रहतीं हैं । ’’
हरिया का लड़का, जो जबलपुर कलेक्टोरेट में बाबू है, हजूर के सामने हाजिर हो कर प्रणाम करता है ।
‘‘ क्यों रे, तू ही हरिया का लड़का है ? ’’ हजूर ने उसकी आँखें में आँखें डाली ।
‘‘ जी । ’’
‘‘ पढ़ा-लिखा है ? ’’
‘‘ जी । ’’
‘‘ नौकरी करता है ? ’’
‘‘ जी, जबलपुर कलेक्टोरेट में बाबू हूँ । ’’
‘‘ हूँ ..., कलेक्टर ने तेरे को रुक्का लिख कर दिया था कि हरिया स्वर्गवासी हो गया है ? ’’ हजूर ने बात को थर्ड गियर में लिया ।
‘‘ नहीं तो, .... वो बहुत दिनों से बीमार थे .... चल बसे । ’’
‘‘ चल बसे ...वहाँ तक तो ठीक है पर स्वर्गवासी हुए हैं ये तेरे से किसने कहा ? ’’
‘‘ किसी ने नहीं । ’’
‘‘ फिर !? हरिया स्वर्गवासी कैसे हो गया ? ’’
‘‘ जो भी मरता है उसे स्वर्गवासी कहने की परंपरा है । ’’
‘‘ परंपरा !! .... क्यों रे पंडिज्जी , .... ऐसी परंपरा है क्या ? ’’
‘‘ नहीं हजूर । ’’
‘‘ सभ्य समाजों में तो है । ’’ हरिया के लड़के ने बताया ।
‘‘ अच्छा !! अब तुम लोग सभ्य समाज वाले हो गए ! ... कुर्सी मँगवाऊँ आपके बैठने के लिये ?! हमारे बगल में बैठ जाना, .. सभ्य हो !! ’’
‘‘ ........ !! ’’
‘‘ बुलवाऊँ कुर्सी ? ’’
‘‘ आपके बगल में कैसे बैठ सकता हूँ सर । ’’
‘‘ इतना समझता है ! जब हमारे बाप-दादे स्वर्गवासी हैं तो तेरा बाप स्वर्गवासी कैसे हो गया बे ?! वो बैठेगा हमारे पुरखों के बगल में !? ’’
‘‘ स्वर्ग तो बहुत बड़ा होता है सर । ’’
‘‘ अच्छा !! स्वर्ग बहुत बड़ा होता है ! तू देख कर आया है ! और ये सर क्या है बे ? अऐं !? ’’
‘‘ अपने से बड़ों को सर बोलते हैं । ’’
‘‘ ये लोग तो हजूर बोलते हें , सूना नहीं तू ने ? ’’
‘‘ सभ्य समाज में ‘सर’ बोलते हैं सर । ’’
‘‘ तो तू अकेला सभ्य है और यहाँ बाक़ी सब असभ्य हैं ! क्यों ? ’’
जैसा कि होता रहता है , बाँया हज्जू हिदायती अंदाज में बोला - ‘‘ सभ्यता जहाँ चलती है वहाँ चलती होगी, यहाँ नहीं चलेगी । समझ गया या उतारी जाऐ तेरी सभ्यता ? ... अबे हजूर बोलने में तेरी जुबान धिसती है क्या ? ’’
‘‘ ........ ! ’’
‘‘ ये तो बता कि स्वर्ग में आरक्षण है क्या ? ’’ दूसरे हज्जू ने पूछा ।
‘‘ पता नहीं । ’’
‘‘ पता नहीं तो जहाँ मर्जी होगी वहाँ घुस पड़ोगे !?! आजादी धरती पे मिली है तो स्वर्ग की भी ले लोगे ? एक के साथ एक फ्री !! क्यों ? ’’ हजूर फुंफकारे ।
‘‘ नहीं सर .... हजूर । ’’
‘‘ फिर ? हरिया स्वर्गवासी कैसे हो गया ? ’’
‘‘ दलितों का स्वर्ग अलग है ........ हजूर ....। ’’
‘‘ ऐसा कैसे हो सकता है ! स्वर्ग में देवता होते हैं , अप्सराऐं होती हैं, तब वह स्वर्ग बनता है, ...... और फिर देवताओं का भी धरम होता है । जात पता पड़ते ही प्रभुजी ने शम्बुक को बरदाश्त नहीं किया था । पता है या नहीं ? ’’
‘‘ पता है । ’’
‘‘ तो फिर ? ’’
‘‘ आपका स्वर्ग सातवें आसमान पर है और दलितों का उससे बहुत दूर बारवें आसमान पर है ... हजूर । ’’
‘‘ अबे त्तेरी तो @#$%ं&.. ...... , बारवाँ आसमान तेरे बाप का है क्या ? जहाँ मर्जी आ रही है वहाँ घुसे चले जा रहे हो ! याद रखो रे ... हम सब बरदाश्त कर सकते हैं पर देवी-देवताओं का अपमान बरदाश्त नहीं करेंगे । और खबरदार जो अब अपने बाप को कभी स्वर्गवासी कहा तो । ’’
‘‘ ........ ........ ’’
‘‘ लेकिन तूने तो अखबार में छपा दिया है ! ...... अब उसका क्या ? ’’
‘‘ सारी सर .... हजूर । ’’
‘‘ कोई सोरी-वोरी नहीं । ....... पकड़ो रे इसको ..... और लिख दो इसके माथे पर कि ‘नरकवासी मेरा बाप ’ ताकि जब इनके लोग शोक के लिये इसके पास आए तो अखबार में छपाई गलत खबर का खुलासा हो जाऐ । ’’