मुश्किल बड़ी माँ-बाप के लिऐ घड़ी हो जाऐगी
मुश्किल बड़ी माँ-बाप के लिऐ घड़ी हो जाऐगी
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मुश्किल बड़ी माँ-बाप के लिऐ घड़ी हो जाऐगी
इस ग़रीबी में ही जब बेटी बड़ी हो जाऐगी
घर में आ जाऐ हमारे और कुछ पैसा अगर
इस मुहल्ले में हमारी भी तड़ी हो जाऐगी
ज़िन्दगी अपनी भी हो जाऐगी दीवाली की रात
इक दीया सलाई से जब फुलझड़ी हो जाऐगी
किसने सोचा था मुक़द्दर हम पे भी मुस्काऐगा
एक मामूली सी जड़ कीड़ा-जड़ी हो जाऐगी
रोज़ पैसा घर में बाबू जी अगर लाते रहे
देखते ही देखते कोठी खड़ी हो जाऐगी
कल जो फूलों का थी कंगन, किसने सोचा था कभी
फूलों के कंगन से साहिल हथकड़ी हो जाऐगी।
