मुक्ति

मुक्ति

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माँ के रोने की आवाज जैसे कहीं दूर से आ रही है।दादी हमेशा की तरह जोर जोर से चिल्ला रहीं हैं “हे भगवान क्या हालत कर दीनी है मेरी छोरी की सत्यानास है जाय इनको” में चाह कर भी बोल नहीं पा रही आवाज गले से बाहर नही निकल रही। मेंने हिलने की कोशिश की लेकिन.....उफ मेरे घावों में टीस सी उठी और अर्धबेहोशी की हालत में मुझे महसूस हो रहा है कि में अस्पताल के बिस्तर पर हूँ । मेरे तन और मन दोनों ही घायल हैं । आह ! मेरी आवाज निकल गई, बहुत दर्द हो रहा है? तभी डाक्टर मेरे पास आई और बोली मैंने हल्की सी आंख खोलकर देखा। डाक्टर ने शायद सबको बाहर जाने को कहा था।वो सब बाहर जा रहे थे। वो मेरी मां की उम्र की थीं । सबके बाहर जाते ही मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेर कर कहा बेटी किसने की तुम्हारी ये हालत? बताओ बेटी कौन जिम्मेदार है तुम्हारी इस हालत का ? तुम जब पूरी तरह से बताने की स्थिति में होगी तभी बाहर खडी पुलिस तुम्हारा बयान लेगी, तुम अपने गुनहगारों को सजा जरूर दिलवाना। मैं रोने लगी नही डॉक्टर अभी नहीं मुझे बहुत दर्द है।क्या बताती उन्हें में खुद समझ नही पा रही थी कि मेरी इस हालत का जिम्मेदार कौन है? डॉक्टर बोलीं “कोई बात नही बेटी तुम अभी कुछ नही बताना चाहती तो मैं तुमसे जबरदस्ती नही करूंगी।लेकिन तुमसे इतना जरूर कहूंगी कि बताने से तुम्हारे दिल का दर्द कुछ कम जरूर हो जाऐगा। मैं तुम्हें दवा दे देती हूँ जिससे तुम्हारे घावों का दर्द कम हो जाएगा”| डॉक्टर ने मुझे की दवा दी जिससे मुझे घावों का दर्द महसूस ना हो लेकिन मन के घावों का क्या करूं ? जो मुझे बचपन से ही दिये जा रहे हैं।

डाक्टर चली गई मैंने फिर आंखे बन्द कर ली, मैं किसी से बात करना नही चाहती थी। इसी हालत में मै न जाने कब अतीत के गलियारों में होती हुई बचपन के उन दिनों में पहुच गई, जहॉं बहुत सी बातें मेरी समझ के बाहर थीं और उस सबकी वजह जिसने मुझे आज अस्पताल के बिस्तर पर पहुंचा दिया। कितना शौक था मुझे वॉलीबाल खेलने का में स्कूल की टीम से खेलना चाहती थी। हमेशा पढ़ने में भी तो अव्वल रहती थी लेकिन मुझे अपनी किसी उपलब्धि पर कभी शाबाशी नहीं मिली। लेकिन कारण मेरा बालपन कभी समझ नहीं पाता था। और उस दिन मॉं कितनी नाराज हुई थी, मेरे कानों में मां की वो आवाज ऐसे गूंज रही है, मानो अभी की बात हो।

“नाक कटवाएगी तू छोरी, लोगों को पता लगेगा तो कितनी बदनामी होगी, छोरी होकर ये खेलकूद और तेरे पापा को पता चलेगा तो तेरे साथ साथ मुझे भी मार डालेंगे” मां अंदर कोठरी में ले जाकर मुझे डांट रही थी जिससे दादी को पता ना लगे वरना वो तो चिल्ला चिल्लाकर सारा घर सर पर उठा लेती।

मेरा बालमन तब ये समझ ही नहीं पा रहा था कि आखिर मेंने ऐसा कौन सा अपराध किया था जिसकी वजह से मां इतनी नाराज और डरी हुई थी। मैं तो सिर्फ अपने स्कूल की वॉलीबाल टीम के साथ दूसरे स्कूल में खेलने ही तो गई थी वो भी इसी शहर में | जब मैं पिछली बार अपनी सबसे पक्की सहेली रीना की बहन की शादी में जाना चाहती थी तब भी मां ऐसे ही नाराज हुईं थी और मुझे जाने नहीं दिया था। क्यों करती है मां मेरे साथ ये सब मेरी समझ में कुछ भी तो नहीं आता।

पापा भी हमेशा कहते “छोरी तू सिर्फ पढ़ने में ध्यान लगा इधर उधर की दोस्ती में समय खराब मत कर।”पापा को कम से कम मेरा पढ़ना लिखना तो पसंद था। उन दिनों में आठवीं कक्षा में पढ़ती थी। हमारा घर छोटा था इसलिए हम भाई बहन अक्सर छत पर खेलते ।भाई तो अपने दोस्तों के घर भी चला जाता लेकिन मुझे तो पडोस के घर में भी जाने नही दिया जाता। कितना बुलाती थी मेरी सहेलियां, यदि कभी मां भेज भी देंती तो दादी सारा घर सर पर उठा लेतीं, वो तो जैसे मौका ढूंढती थी मुझे डांटने का और मेरे बहाने मां को भी। वो मां पर जब तब चिल्लातीं “ऐ शीला बहु छोरी को कछु लच्छन सिखा, सबरे दिन घोड़ी जैसी कूदती फिरै है जहां वहां, जाए घर कौ कछु काम सिखा, सीनो पिरोनो सिखा, पराए घर जानो है जाके जेई लच्छन रहे तो नाक कटवावेगी जायकें।” और यदि मां कह देतीं कि “मांजी अभी तो बिन्नो छोटी है, सीख लेगी और फिर ये पढ़ाई भी तो करती है।” बस तब तो दादी का पारा और चढ़ जाता कहतीं “बहु बहुत जुबान चल रही है तेरी, मैं इसके बराबर की थी, जब ब्याहकर आई थी । पूरी गृहस्थी का काम करती थी।” दादी फिर बहुत देर तक बडबडातीं रहती, मां बेचारी चुप हो जातीं। तब मेरी समझ में ये बिल्कुल नही आता कि दादी मुझसे इतनी नाराज क्यों रहती | अनेक सवाल मेरे मन में तूफान की तरह उठते। रात को हम सबके बिस्तर जमीन पर लगते और मां बेचारी दिन भर काम करके बहुत थक जातीं तब तो कोई कामवाली भी नहीं थी। मां बर्तन झाडू पोछा सब खुद ही करती थी, मैं मॉं के पैर दबाना चाहती तो मां कहती “रहने दे बेटी, छोरियों से पैर नहीं दबबाते, आजा लेट जा मेरे पास”| जब में मां के साथ बिस्तर पर लेटती तो मां से सवाल करती। “ मां दादी हमेशा मुझसे नाराज क्यों रहती हैं? आप भी मुझे कही जाने नहीं देती। भैया को तो कोई कुछ नहीं कहता वो भी तो दोस्तों के घर जाता है | वो तो दूसरे शहर पिकनिक पर भी गया था, तब भी आपने मुझे नहीं भेजा।”और मां मुझे झिङक देतीं “ वो छोरा है तू छोरी है तू उसकी बराबरी ना कर सके | फिर तुझे पराए घर भी तो जाना है कोई ऊंच नीच हो गई तो।” लेकिन कैसी ऊंच नीच मां? में पूछती तो मां मुझे डांट देतीं “कितना बोलती है री छोरी तू सो जा अब चुपचाप दिनभर काम करके मेरा बदन थक गया है, अब तू मेरा माथा मत दुखा।” मां तो सो जातीं लेकिन मेरे सवाल वहीं खडे रहते जिनके जबाब मेरी समझ में कभी नहीं आते थे। जैसे ये घर मेरा घर क्यों नहीं है? वो पराया घर कौन सा है ? जहां मुझे जाना है और क्यों ? ये सब सोचते सोचते में भी सो जाती और अगली सुबह फिर से भूल जाती वो सब बातें।

कभी कभी मां मुझे प्यार से समझाती “बेटी हर लड़की को एक दिन अपनी ससुराल जाना होता है और वही उसका असली घर होता है।” लेकिन मां ये घर मेरा नहीं है क्या ? में पूछती तो मां चुप हो जातीं शायद मेरे इस सवाल का जबाव उनके पास भी नहीं था कि लड़की का घर कौन सा होता है ?

इतवार के दिन भैया देर तक सोता और मैं भी तो सोना चाहती थी लेकिन मां मुझे सुबह सुबह ही उठा देतीं। ‘मां सोने दो ना, मेरी भी तो छुट्टी है, भैया भी तो सो रहा है’ मैं कहती लेकिन मां कुछ कह पातीं उससे पहले दादी चिल्लातीं “सासरे जाकर यही लच्छन दिखाएगी छोर, बहु बेटियां मर्दों के उठने से पहले उठकर अपनी नित्य क्रिया से निबट लेतीं हैं और घर के कामकाज में लग जातीं हैं। दादी और ना चिल्लाएं इस डर से में फटाफट उठ जाती और घर के कामकाज में मॉं का हाथ बटाती। जैसे जैसे मैं बडी हो रही थी वैसे ही सब लोगों की टोकाटाकी भी शायद मेरी तरह ही बड़ी हो रही थीं। कभी दरवाजे पर खड़ी होकर अपने घर के सामने वाले घर में रह रही अपनी हमउम्र गुडडो से बात करती तो भी दादी नाराज हो जातीं। छत पर पढ़ने बैठो तो मां चिल्लातीं ‘छोरी नीचे आ।गर्मियों में छत पर शाम को हवा कितनी अच्छी लगती लेकिन मां कहती कोई साथ जाए तभी जाना अकेले छत पर मत बैठा कर। जिन लड़कों के बचपन से खेल रही थी उनसे अब बात भी कर लेती तो घर में तूफान आ जाता “हे भगवान ये छोरी बदनाम हो गई तो कहीं मुँह दिखाने लायक नही रहेंगे” दादी चिल्लातीं तब मेरी समझ में ये बात नहीं आती थी कि बबलू . सोनू . बंटी के साथ तो में छुटपन से खेल रही हूं। हम एक ही कक्षा में हैं उनसे पढ़ाई के विषय में ही तो बात कर रही थी फिर बदनाम कैसे हो जाऊंगी। लेकिन कारण पूछने पर डांट के सिवा कुछ नहीं मिलता था।

मुझे आज भी याद है, मां स्कूल से आते ही मेरे बैग की तलाशी लेतीं, कही जाना हो तो मां के साथ ही जाती, मां की नजरें मेरे चेहरे पर ही होती, ऐसा लगता मानो कुछ तलाश रही हैं कि मैं रास्ते में किसी को देख तो नहीं रही।और यदि कभी महीने के एक दो दिन ऊपर हो जाते तो मां बार बार प्रश्न करतीं कि में महीने से क्यों नहीं बैठी मुझ पर हमेशा शक सा करतीं थी, परेशान हो जाती थी। मैं तो समझ भी नही पाती थी कि इस सबका क्या मतलब है ? मां ऐसा क्यों करती है? टयूशन पढ़ने जाती तो छोटे भाई बाडीगार्ड बनकर जाते । सचमुच बहुत बुरा लगता था।

मैं अक्सर अकेले में खूब रोती, आखिर मैं वो सब क्यों नही कर सकती, जो मेरा दिल करना चाहता है, जिसमें मुझे खुशी मिलती है। अब जब मैं बड़ी हुई तब समझ में आता है, कि छोटे शहर में जहां सारा समाज एक ही जगह रहता हो, तो सबकी नजरें एक दूसरे पर रहती थीं, वहां बेटी को इज्जत के साथ अपने घर से विदा करना एक बड़ी जिम्मेदारी थी।

मैं पढ़ने में अच्छी थी, इसलिए पापा का झुकाव मेरी ओर था लेकिन दादी बाबा और मां तीनों ही पुराने ख्यालात

के थे। बारहवीं की परीक्षा देते ही दादी ने फरमान सुन दिया कि “छोरी अब आगे नहीं पढ़ेगी अच्छा सा छोरा

देखकर इसी साल इसके हाथ पीले करने हैं।”

पापा ने विरोध किया दादी को समझाने की कोशिश भी की कि “मां छोरी का पढ़ने में मन लग रहा है कम से कम

बीए तो करा दें । आडे वक्त में छोरी अपने पैरों पर तो खड़ी हो सकेगी और फिर अभी इसकी उम्र भी तो छोटी

है।”दादी कुछ जबाब देती उससे पहले ही दादाजी चिल्लाने लगे ‘पढ़ा लिखा कर मास्टरनी बनावेगो का छोरी कों .

कमाई खावेगा छोरी की, थू थू करवावेगा हम पर’ फिर दादी बोलीं ‘ काहे की छोटी उमर अबकी पूरे सतरह साल की

है जायगी।तिरिया तेरह मर्द अठारह होवे। जाकी उमर में तेरी बोहरिया मां बन गई थी भूल गयो।’

पापा बेचारे क्या करते चुप रह गये थे । मैं भी बहुत रोई थी उस दिन । मां ने मुझे प्यार से समझाया “बेटी एक

दिन तो हर लडकी को ससुराल जाना ही पडता है, छोरियां तो राजा महाराजा की भी नहीं रही मायके में। लड़कियों

का असली घर तो ससुराल ही होता है।

मेरे लिए लड़कों की खोज जोरों शोरो से शुरू हो चुकी थी | इसी बीच मेरा बारहवीं का नतीजा आ गया था।में पूरे

स्कूल में अव्वल थी ।पापा बहुत खुश हुए थे खुश तो मां भी थी । यदि कोई खुश नही था तो वे मैं थी क्योंकि मुझे

अपने सपनों के टूटने का आभास हो रहा था।उसी साल मेरी शादी हो गई और में ससुराल आ गई मेरा ससुराल बड़े

शहर में है । अपना घर, अपना शहर छोडकर इस उम्मीद इस सपने के साथ कि ये तो मेरा घर होगा आराम से

आगे की पढ़ाई पूरी करूंगी, हर वो ख्वाहिश पूरी करूंगी जो मायके में पूरी नही हुई।

कितना बड़ा और कितना सुंदर घर था ।आधुनिक सुख सुविधा की हर एक चीज थी घर में, जो चीजें मेंने अपने

मायके में नही देखी थी, रंगीन टीवी, फ्रिज, गाडी में मन ही मन अपने भाग्य पर खुश थी।सास ससुर ननद देवर का

भरा पूरा प्यार भरा परिवार ।सब मुझे बहुत प्यार करते और पति तो मानो देवता हैं, सुमित उम्र में मुझसे छ

साल बड़े थे, बहुत ही समझदार और मृदुभाषी कितना ख्याल रखते मेरा।

कितनी खुश थी में अपने ससुराल में मायके को तो जैसे भूल ही गई थी | जब पहली बार मायके गई और मां को

ससुराल के बारे में बताया तो मां बहुत खुश हुई थीं।अब तो दादी भी बड़े प्यार से बात कर रहीं थी मुझसे। मेरे

गहने कपडे. बडे चाव से देखदेख कर खुश हो रहीं थी।

फिर कुछ ही दिनों में ये आकर मुझे ले गये | मैं ससुराल आकर बहुत खुश थी धीरे धीरे मैंने घर का कामकाज

संभाल लिया।

पर मेरी खुशी ज्यादा दिन नहीं रह पाई| सबके चेहरों पर जैसे नकाब थे और वो दो महीनों में ही उतरने लगे और

सबके असली चेहरे नजर आने लगे| जो देवर इतना प्यारा और इज्जत देने वाला लगा वो तो बहुत ही बद्रतमीज

और मुंहफट निकला। ननद एक नंबर की चुगलखोर बददिमाग थी और इनकी भी गुरू थी सास उनकी जुबान बहुत

ही कडवी थी।

ससुर मूकदर्शक थे और सास के हुक्म के गुलाम बस किसी के चेहरे पर नकाब नहीं था तो वो थे मेरे पति लेकिन

वो इतने सीधे थे कि मां के सामने जुबान नही खुलती। मुझे प्यार तो बहुत करते मेरे साथ होने वाले अत्याचार का

विरोध करने की हिम्मत उनमें नही थी।

नौकरों की छुटटी कर दी गई थी फ्री की नौकरानी जो आ गई थी घर में।

नई नई शादी थी रात की नींद पूरी नही होती थी। पति के प्यार में जो खोई रहती थी और सुबह उठने में जरा सी

देर हो जाती तो सास अपने रोद्र रूप में आ जातीं और चिल्लातीं“यही लच्क्षन सिखाए हैं तेरी मां ने ।बाप के यहां से

नौकर लेकर आती, दहेज तो ढ़ंग का दिया नहीं तेरे बाप ने और लच्क्षन देखो महारानी के जैसे किसी राजा की बेटी

है।”वो तो पूरे दिन चिल्लाती यदि में हाथ पैर जोडकर माफी मांगकर उन्हें शांत ना कर देती। और फिर सारे दिन घर

के कामों में पिसती, कैसे भी वो शांत रहें, यही सोचती में।ऐसे ही एक दिन खाने में नमक थोड़ा ज्यादा हो गया

सास ने गुस्से में थाली मेरे मुंह पर फेंक कर मारी, सब्जी मेरी आंख में चली गई में दर्द से तडपती रही लेकिन

किसी को मुझपर दया नही आई। शाम को जब मेरे पति सुमित ऑफिस से आये तो डॉक्टर के यहां लेकर गये।

मेरे ससुराल वालों के जुल्म दिन ब दिन बढ़ते जा रहे थे |गालियों के साथ साथ अब हाथ भी उठने लगा था। ननद

देवर भी उन्ही का साथ देते। मेरे पति दिनभर ऑफिस में होते और घर में मुझ पर तरह तरह के जुल्म ढाए जाते। रात को इनकी बांहो में, मेरा दर्द कम जरूर हो जाता सुमित बेचारे मेरी हालत पर खुद रोते और कहते “सोम्या

तुम्हारी ये हालत मुझसे देखी नही जाती, लेकिन में मां से कुछ कह भी नही सकता, वो हमें घर से निकाल देंगी

और मेरी तनख्वाह अभी इतनी नही है कि हम कहीं अलग घर लेकर रह सकें।” में नई नौकरी तलाश रहा हूं जैसे ही

अच्छी नौकरी मिलेगी हम अलग चल कर रहेंगे। बस कुछ दिन और सह लो । मैं अक्सर दिन में होने वाले जुल्मों

के बारे में सुमित से भी नही कहती जिससे वो दुखी ना हों ।लेकिन कभी कभी में इतनी दुखी हो जाती कि में

सोचती यहां से भागकर अपने मम्मी पापा के पास पहुंच जाऊं लेकिन विदाई के वक्त कही गई मां की बातें याद

कर मेरे कदम रूक जाते मां ने कहा था “बेटी अब ससुराल ही तेरा घर है कभी लड़कर या बिना बुलाए मायके मत

आना, जब हम बुलाएं तभी आना।

मैं इसी उम्मीद में सब कुछ सहन कर रही थी कि कभी तो ये लोग पिघलेंगे। यही सब झेलते झेलते एक साल से

ऊपर हो चुका था। मेंने और सुमित ने निर्णय किया था कि जब तक हम इस घर में है तब तक हम बच्चा नहीं

करेंगे। सुमित तो मुझे आगे पढ़ाना भी चाहते थे लेकिन हालात हमारा साथ नही दे रहे थे।

अब तो मेरी सास को एक बहाना और मिल गया था, मुझे कष्ट देने का वो कहतीं “ इसके साथ की ब्याही आई

छोरियों की गोद में छोरा छोरी खेल रहे हैं ओर एक इसे देखो अभी तक कुछ ना जना । नाश जाए इसके मां बाप

का एक तो दान दहेज ना दिया ऊपर ये बांझ और भेड दीनी है। थोडे दिन और देख रई हूं, नही तौ में तौ अपने

छोरा कौ दूसरौ ब्याह कर दऊंगी।” और एक दिन तो वो मुझे चैकअप के लिए डॉक्टर के पास ले गई। जब उन्हें

पता लगा कि हम अपनी मर्जी से बच्चा पैदा नही कर रहे तब उन्होने सारा घर सर पर उठा लिया। हार कर हमें

हथियार डालने पडे। मूझे लग रहा था शायद बच्चे के आने पर इन सबका सुलूक मेरे प्रति बदल जाएगा।

जल्द ही मैं गर्भवती हो गई । इस खुशखबरी से घर का माहौल सचमुच बदल गया था। मैं भी खुश थी । आजकल

सब मेरा ख्याल रख रहे थे। मुझे लगा कि अब मेरे दुखों का अंत हो गया है। देखते देखते तीन महीने बीत चुके

थे। एक दिन सुबह जैसे ही मेरे पति आफिस गये तो सास बडे प्यार से बोली, “बेटी आज तू नाश्ता मत करना, हम

डॉक्टर के यहॉं चल रहे हैं, तेरा अल्ट्रासाउंड करवाने उससे पता लग जाएगा कि बच्चा ठीक से बढ़ रहा है कि नहीं।

मैं तैयार हो कर उनके साथ चली गई । मेरी जांच हुई उसके बाद मुझे बाहर भेज कर मेरी सास और डॉक्टर में जाने

क्या बात हुई। थोडी देर में सास ने बताया कि बच्चा थोडा कमजोर लग रहा है, आज तुम्हें एडमिट करेंगे कुछ और

टैस्ट करने के लिए। जब मुझे होश आया तो मेरे पास नर्स के अलावा कोई नही था। मेंने नर्स से पूछा ‘सिस्टर मेरी

सास कहां है।’ उसने जो जबाब दिया उसे सुनकर में सन्न रह गई थी ।उसने कहा ‘वो तो तुम्हारा अर्बोशन करवा

कर कब की चली गई”। “लेकिन वो तो मेरे बच्चे को लेकर इतनी चिंतित थी, बच्चा थोडा कमजोर ही तो था।फिर

अर्बोशन क्यों ? मेरे पूछने पर नर्स ने बताया कि मेरी सोनोग्राफी करवाई गई थी मेरे गर्भ में बेटी थी इसलिए। क्या

तुम्हें नही बताया गया था ये सब? और आपकी सास बोल कर गई थी कि आपको लेने आपके पति आएंगे शाम को।

नर्स तो चली गई में फूट फूट कर रो पडी। शाम को सुमित आए तो वो भी बहुत उदास हुए मैं उनसे लिपट कर

रोती जा रही थी और उनसे पूछ रही थी कि “मेरे साथ ये सब क्यों किया ? मुझे तकलीफ देकर उन लोगों का पेट

नही भरा जो, मेरी बच्ची को दुनिया में आने से पहले ही मार दिया।मेरे तन और मन दोनों ही लहुलुहान हो चुके थे,

मैं मानो वो चिड़िया थी, जिसके पंख काट दिये गये हों।ये मुझे जैसे तैसे घर लेकर गये, मैं एक जिन्दा लाश

बनकर रह गई थी।जब इन्होने अपनी मां से कहा कि उन्होने मेरे साथ ऐसे क्यों किया ? तो मांजी ने बडी ही बेशर्मी

से जबाब दिया “मुझे पोता चाहिये था” | लेकिन मां “एक बार मुझसे पूछ तो लेतीं” जब इन्होने कहा तो मांजी

चिल्लाने लगी’ “ तेरे ही भले के लिए किया है ये सब और तू क्या मेरा बाप लग रहा है, जिससे पूछ कर सबकुछ

करूं और पता नही क्या क्या चिल्लाती रहीं | उन्हें अपने किये पर जरा भी अफसोस नही था । सुमित ने अब

डिसाइड किया कि हम जल्द ही ये घर छोड देंगे। लेकिन भगवान को शायद कुछ और ही मंजूर था अभी इस सबको

कुछ ही दिन हुऐ थे हम चुपचाप अपने रहने का ठिकाना ढूंड ही रहे थे कि एक दिन इनके आफिस में कुछ परेशानी

हुई और सुमित की नौकरी चली गई।

अब तो सास को एक और मौका मिल गया मुझे तकलीफ देने का | मुझ पर दबाब बनाया जाने लगा कि मैं अपने

पापा से पैसे मांगू, सुमित का बिजनेस शुरू करने के लिए।मैंने उन लोगों को बहुत समझाया कि मेरे पापा इतना

पैसा कहां से लाएंगे, पहले भी तो कई बार वो दे चुके हैं ।लेकिन किसी ने मेरी एक ना सुनी। सुमित ने भी अपने

मां बाप को समझाने का भरसक प्रयास किया, उन्होने कहा कि उन्हें जल्द ही दूसरी नौकरी मिल जाऐगी।लेकिन मां

पर तो भूत सवार था हारकर मैंने पापा को फोन किया और जबाब वही था जिसकी मुझे उम्मीद थी। पापा ने इतने

पैसों का इंतजाम ना कर पाने की असमर्थता व्यक्त की आखिर क्या करते वो बेचारे, इतनी कम तनख्वाह थी और

इतनी सारी जिम्मेदारियां जो थी उनके ऊपर। लेकिन सास को ये नागवार लगा और उन्होंने तरह तरह से मुझे

प्रताडित करना शुरू कर दिया।मुझे अक्सर भूखा रखा जाता, सारे घर का काम करके यदि थक कर लेटना चाहती तो

गालियां दी जाती। पति विरोध करते तो सास ससुर देवर उन पर भी हावी हो जाते। मैं दिन पर दिन कमजोर हो रही

थी। सुमित बेचारे नौकरी पाने के लिए दरबदर भटक रहे थे। लेकिन कल रात सुमित कितने खुश थे, मुझसे बोले

“सौम्या हमारे दुखों का अब अन्त आ गया है, ये नौकरी मुझे ही मिलेगी इन्टरव्यू के दो रांउड हो चुके हें कल

ऑफर लैटर मिल जाएगा और अगले हफ्ते ज्वाइनिंग होगी । मेरा एक दोस्त वहां काम करता है उसने बताया ये

कम्पनी कर्मचारियों को क्वार्टर भी देती है रहने के लिए।जल्द ही हम ये घर और ये शहर छोड़ कर चले जाएंगे। मेरे

एक जोडी कपडे बैग में डाल देना में कल आगरा जा रहा हूं, रात तक या परसों सुबह तक आ जाऊगा।’ मैं भी बहुत

खुश हुई थी ये सब सुनकर।

आज सुबह सुमित के जाने के थोड़ी देर बाद मेरा देवर मेरे पास आया और बोला भाभी मेरे लिए थोडी चाय बना

दो। मैं रसोई में चाय बना ही रही थी, तभी सास और ननद भी रसोई में आ गईं, मेंने अचानक आहट सुनी पीछे

मुडकर देखा तो ससुर और देवर भी और………………मैं चीखी चिल्लाई मेरे ऊपर कैरोसीन डाल कर आग लगा दी,

उन लोगों को मैंने लाख कोशिश की भागने की, लेकिन वो चार थे और मैं अकेली, मुझे बचाने वाला, मेरी चीख

सुनने वाला, वहां कोई नही था। टीवी फुल वोल्यूम में चल रहा था, जिससे मेरी आवाज बाहर ना जा सके।वो सब

मुझे जलता छोडकर रसोई से बाहर चले गये रसोई का दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया था। सास बोल रही थी मेरे

बेटे को मुझसे दूर ले जाएगी और पता नही क्या क्या गालियां दे रही थी। शायद उन्होने हमारी बातें सुनी थी। मैं

छटपटा रही थी, मेरा पूरा बदन जल रहा था, अचानक मेरे दिमाग ने काम किया और मैंने रसोई में भरे रखे पानी

के बर्तन अपने ऊपर उडेंलना शुरू कर दिया तभी सास चिल्लाई “अरे ये हरामजादी पानी डाल कर आग बुझा रही है, रोको नही तो बच जाएगी। वो सब जैसे ही दरवाज़ा खोलकर अन्दर आने लगे मुझमें उस समय जैसे बचने की

चाहत पैदा हो चुकी थी, मैं अपनी पूरी ताकत बटोर कर बाहर की तरफ भागी, वो लोग कुछ कर पाते या समझ पाते

तब तक में मेन दरवाज़ा खोलकर बाहर सड़क पर बचाओ बचाओ चिल्लाने लगी, मेरे कपडे. लगभग जल चुके थे में

अर्धनग्न अवस्था में बाहर ही गिर पडी, सारे पडोसी इकठ्ठा हो चुके थे, सास ससुर की हिम्मत नही थी बाहर आने

की ,वो इस सबके लिए तैयार जो नही थे। जब होश आया तो खुद को अस्पताल में पाया। पडोसियों ने ही मेरे मम्मी

पापा को सूचना दे दी थी। सास ससुर भी अस्पताल पंहुच कर रोने का नाटक कर रहे थे और मेरे जलने की मनगढ़ंत कहानियां सुन रहे थे। डाक्टर ने मम्मी पापा को बताया कि में 80 प्रतिशत जल चुकी थी। अचानक मेरी सास की आवाज मेरे कानों में पडी, वो शायद मेरी मां से बात कर रही थी, उन्हें लग रहा था में बेहोश हूं उनकी आवाज ने मुझे फिर वर्तमान में पहुंचा दिया।वो कह रही थी “ बहनजी अपनी बेटी को समझाइये, पुलिस को कोई

उल्टी सीधी गवाही ना दे। इसको रहना तो हमारे साथ ही है। उनका ये स्वार्थीपन देख कर मुझे घिन आ रही थी और

जीने की इच्छा भी खत्म हो चली थी। मैंने अपनी आंखे खोली तो पापा को सामने पाया, मुझे होश में आया देखकर

पापा फूटफूट कर रो पडे थे और बोले “बेटी मुझे माफ कर दे मेरी वजह से तेरी ये हालत हो गई है। दादी भी रो रही

थी “हे भगवान हमें माफ कर दे हम अपनी छोरी के ब्याह की जल्दी ना करते तो छोरी की ये हालत ना होती। मां

का भी रो रो कर बुरा हाल था, मैंने मां और दादी से कहा ‘मां में अब समझ गई हूं कि बेटी का कोई घर नही

होता। वो तो मायके में भी पराई होती है और ससुराल में भी । दादी मैं समझ गई में क्यों में आप लोगों पर बोझ थी

?मैंने हाथ जोडकर मां से कहा मां धन्यवाद आपने कम से कम मुझे जन्म तो दिया । मैं तो अपनी बिटिया को

इस दुनिया में ला भी ना सकी। मुझे नही जीना ऐसी दुनिया में, जहां एक औरत दूसरी औरत का दर्द कम नही

करती बल्कि वो ही उसकी सबसे बडी दुश्मन बन जाती है।नही जीना चाहती इस स्वार्थी दुनिया में डॉक्टर साहब

मुझे मार डालिये मैं चीखे जा रही थी डाक्टर मुझे शांत करने की कोशिश कर रहे थे मैं फूटफूट कर रो रही थी

और ……………और मैं शांत हो गई शांत हमेशा के लिए ।उसी वक्त सुमित आगरा वापिस पहुंचे थे ।मां जोर से

चीखी बिन्नो ………।सुमित भी मुझसे लिपट कर रो पडे. ‘सौम्या मुझसे एकबार बात तो कर लो मेरा इंतजार तो

करतीं’ में भी उनसे बात करना चाहती थी लेकिन…लेकिन में तो अब निर्जीव हो चुकी थी। मेरे पति मां दादी पापा

सब मेरे निर्जीव शरीर से लिपट कर रो रहे थे।

पर मैं …….मैं तो मुक्त हो चुकी हूं हर दर्द हर तकलीफ से।


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