मन का मैल
मन का मैल
प्रिय बच्चों आज मैं। एक कहानी सुना रही हूँ कहानी का शीर्षक है मन का मैल। बचपन की बात है, जब हम स्कूल में पढ़ते थे। स्कूल में तोबहुत सारे दोस्त होते हैं और बहुत सारी मस्ती भी होती है। ऐसी ही मेरी भी एक दोस्त थी वह नेपाली थी उसे हम प्यार से गोलचू बुलाते थे वह गोल मटोल थी चेहरा भी एक दम टमाटर की तरह गोल था। हम जब लंच टाइम होता था मिलकर साथ खाना खाते थे उसे मेरा खाना बहुत पसंद आता था मैं भी उसके लिए तरह तरहकी सब्जिया बनवा कर ले जाती थी।हम दोनों की दोस्ती पूरे स्कूल में प्रसिद्ध थी।दोनों एक दूसरे का बहुत ध्यान रखते थे लेकिन एक दिन जब हमारा लंच टाइम ख़त्म हुआ। हमें पता ही नहीं चला कि कब मैडम अंदर आ गई है हम लोग अपने मस्ती में मशगूल थे।
मैडम बहुत ग़ुस्से में थी। उन्होंने मेरी नेपाली दोस्त से पूछा क्यों तुम्हारी दोस्त तुम्हें गोलचू कहती है ? उसने भी हाँ कहदिया। मैडम ने तुरंत ही मुझे कक्षा से बाहर कर दिया मुझे कुछ भी समझ नहीं आया क्या हो रहा है? अब टीचर को तो हम कुछ कह नहीं सकते मैंने अपनी दोस्त से बिलकुल बोलना बंद कर दिया मुझे लगा इसने ही मैडम को मेरे खिलाफ़ कुछ कहा होगा हालाँकि उसने मुझसे बात करने की बहुत कोशिश की लेकिन मेरे मन में तो मैल जम चुका था मैंने कुछ नहीं सुना।
कुछ दिनों तक उसने बहुत प्रयास किया लेकिन फिर वह भी थक गई।अब जब भी हम एक दूसरे को देखते रास्ता बदल देते थे।इसी तरह हमारे स्कूल की पढ़ाई पूरी हो गई।बहुत समय बाद मुझे पता चला की इसमें मेरी सहेली की कोई गलती नहीं थी।यह तो मैडम को किसी और नेझूठी शिकायत कर दी थी। उसने मैडम को यह कहा कि मैं सब लोगों को कुछ कुछ अलग नाम से चिढ़ाती हूँ। इसलिए मैडम ने भी मुझे यह सजा दी थी इसमें मेरी सहेली की कोई गलती नहीं थी। इसलिए हमें कभी भी किसी के लिए अपने मन में मैल नहीं रखना चाहिए उससे तुरंत बात कर सही बात पता कर लेनी चाहिए चाहिए।