Atal Painuly

Children Stories

3.0  

Atal Painuly

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मित्रता का मूल्य

मित्रता का मूल्य

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मैत्री,मित्रता दो ह्रदयों के बीच का एक ऐसा सम्बध जिसमें वह सभी भेदों और बंन्धनों को भूला देता है और अगर यही मित्रता निश्छल मन से की जाये तो यह अमृत तुल्य हो जाती है । मंगतू उत्तराखंड के पहाड़ी आंचल में रहने वाला वह चरवाहा है जिसकें माता -पिता बचपन में ही उसे छोड़कर ,दुनिया से विदा ले चूकें है । उसके माता - पिता के बाद उसका एकमात्र आश्रय उसके मामा मुरली है । वैसें तो मुरली;मंगतू से पुत्र की भांति प्रेम करता था । वह अपने बच्चों और मंगतू में कोई फर्क नही समझता था । अंतर करता भी क्यों आखिर वह उसकी इकलौती बहन की अंतिम निशानी और जमा पूंजी के रूप में उसे मिला था।मुरली को भी दो पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई थी उसकें दोनों पुत्र लगभग मंगतू के हमउम्र थें ।

समय के साथ -साथ मंगतू बचपन की सुनहरी यादों में खोया रहता था । वह समय के इस परिवर्तन को जान गया था । आखिर कोई कितना भी करीबी हो पर वक्त कुछ न कुछ परिवर्तन अवश्य ला देता है । आखिर कब तक कोई किसी को मुफ्त में खिला सकता है ,मुरली की पत्नी उसे हर बार ताने के साथ यही कहती थी ,पर मुरली जानता था ।मंगतू ऐसा नही है ब्लाकि वह तो पशुपालन में उनकी सहायता करता है । मंगतू को मुफ्त खाना स्वंय पसंद नही था इसलिए वह पशुपालन में अपनें मामा की सहायता करता था । परन्तु उसकी मामी को यह बात भी नही सुहाती थी ।

एक बार मंगतू दो भोटिया किस्म के  पिल्लों को घर लेकरआया । वह पिल्ले दो - तीन दिनों से बीच रास्ते पर अपनें मालिक का इंतजार कर रहे थें । वे इस बात से बिल्कुल बेखबर थे कि उनका स्वामी उन्हें विराऩे पथ पर छोड़कर चला गया है ।मंगतू पशुपालक तो था ही इसलिए उसे जीवों का कष्ट देखा नही जाता था ।इसलिए मंगतू उन्हें रास्तें से उठाकर घर ले आया । पशुपालन तो वह जानता ही था इसलिए उसे उन्हें पालने में अधिक मेहनत नही करनी पड़ी । बस इसी बात पर उसकी मामी उस पर क्रोध करती थी ।

कुछ समय बाद ही वह पिल्ले स्वस्थ्य और तंदुरुस्त हो गये और समय के साथ वह छरहरी काया युक्त गहरें कालें और चितकबरे रंग दो तंदुरुस्त भोटिया कुते बन गये थे। उनमें एक का नाम था 'कुरी' और दूसरा 'छैलू'। अब तक तो सब ठीक चलता रहा पर उसकी मामी विमला को अनाथ कुत्तों पर उसका प्रेम व्यर्थ ही लगता रहा और इसी कारण वह उससे पहलें से भी अधिक कोध्रित रहती थी । वह उसे हर बार खानें -पीनें की वस्तुओं को लेकर टोकनें लगी थी ; पर मंगतू था कि उसे उन कुत्तों से बहुत अधिक लगाव हो गया । लगाव हो भी क्यों न पूरें समय वे श्वान मंगतू के आगे -पीछे घूमतें थें । उसके पशुओं की रक्षा भी करते थे । पशुचारण के समय अपनी सूक्ष्म दृष्टि से पशुओं का ध्यान रखते थें । इसकें अतिरिक्त गाँव के हर द्वार पर जाकर अपना अंश ऐसें मांगतें थें मानों वह उस गाँव के रक्षक हो । यह सच भी था वह गाँव वालों के खेतों की रखवाली भी करतें थें, कभी जंगली सुअर, बंदर, सियार को गाँव भर में फटकनें भी न देतें थें ।

एक दिन मंगतू के मामा और उनकें पुत्रों को शहर में आवश्यक काम था । इसलिए वह कुछ दिनों के लिए गाँव से बाहर गयें थे । मंगतू और मंगतू की मामी ही घर पर थे । नित्यकर्म के अनुसार वह अपनें कार्यों को करनें में लगें थे । परन्तु मंगतू की मामी ने आज न श्वानों के लिए और न मंगतू के लिए भोजन बनाया । वह खाली पेट ही पशुओं को लेकर जंगल चला गया । सांझ घिर आयी थी ।दिन -भर पेट भी खाली था इसलिए मंगतू अपने पशुओं को लेकर अपने घर की ओर बढ़ा परन्तु तभी जंगल से बाघ की गुर्राहट सुनाई देनें लगी । जो अक्सर पहाडों पर घटित होता है । मंगतू शीघ्र अपने पशुओं को लेकर घर आया । रात होंने से पहले उसनें सब पशुओं का दाना -पानी करा दिया पर उसे इस समय भी भोजन नही मिला ।

चारों ओर से अंधेरा घिर आया था । रात गहरी होती जा रही थी और गाँव में भय का माहौल व्याप्त था । मंगतू और उसकें श्वान अपने घर की निचली मंजिल के दरवाजे पर भोजन मिलनें की आश लगाकर बैठें थें । उसकी मामी पशुओं को देखनें के लिए घर से थोड़ी दूर पशुशाला गयी थी। उनकें पीछे-पीछें कुर्री और छैलू भी पशुशाला गयें । जैसें ही वह पशुशाला पहुँचे वहीं सामनें के खेतों की खड़ी फसल हिलनें लगी । खतरें की आहट से कुत्तें व्यर्थ ही भौकनें लगें।भौकनें की आव़ज सुनकर मंगतू की मामी उन पर चिल्लाने लगी और उसने एक ड़डी से उन दोनों की पिटाई भी कर दी । फिर जाकर वे मूक जानवर चुप हुए। खतरा लगातार उनकी ओर बढ़ता जा रहा था उन्होंने इस बात को भांप लिया था फिर भी वे मूक चुप हो गये थें कि कहीं आकारण दण्ड न मिल जायें । तभी अचानक बाघ रूपी काल खड़ी फसल से निकलकर मंगतू की मामी के सामने खड़ा हो गया । जिससें डरकर मंगतू की मामी चिल्ला पड़ी ; अवाज सुनकर मंगतू भी तुरंत पशुशाला की ओर दौड़ पड़ा । इससे पहलें कि बाघ उसकी मामी पर हमला करता कुर्री ने स्वामी भाक्ति की लाज रखकर उसका सामना करने की ठानी और उल्टा उस पर ही टूट पड़ा । छैलू उसे अकेले कैसें भिड़ने देता वह भी रण में कुद पड़ा और अपनी मैत्री का मूल्य चुकाने लगा । जब बाघ ने कुर्री पर हमला किया तो छैलू उसकों विचलित करता और जब वह छैलू पर झपटता तो कुर्री उस पर हमला करता । दो शत्रुओं से भिड़कर बाघ की शाक्ति छीण हो रही थी और वह घायल भी हो गया था पर उसनें भी हार नही मानी और छैलूं के कान पर एक जोरदार वार किया जिससे उसका कान दो भागों में बांटकर लहू-लुहान हो गया । छौलू और कुर्री ने बड़ी फूर्ती से साथ मिलकर बाघ पर वार किया । जिससे वह तिलमिला उठा और जंगल की ओर भाग गया। कुर्री और छैलू किसी योद्धा की तरह सीना फूलकर मंगतू की तरफ आ रहे थे । मंगतू के चेहरें पर एक अलग ही चमक और उसकी मामी की आंखों से आंसू बह रहे थें ।



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