माँ कमज़ोर
माँ कमज़ोर
माँ हमेशा कहती थी "जब मर जाऊंगी तब मेरी कीमत समझ आएगी।"जब भी माँ थक हार के गुस्से में मरने की बात कहती बहुत बेपरवाह होकर मै भी हँसते हुए कह देती "माँ मरने से पहले खाना बना देना।" पर उस सुबह कुछ ऐसा हुआ कि कभी यह कहने की हिम्मत न हुई। रात को बाबा पर किसी ने हमला करने की कोशिश की थी और हमलावर से माँ की शादी के दिन से दुश्मनी थी। जब भी वो धमकी देते तो मै माँ से एक वाक्य कह देती काले बादल सिर्फ गरज़ते है बरसते नहीं । उनका तो पता नहीं पर यह कहना मात्र मुझे तसली दे देता। पर उस रात यह कहने की भी हिम्मत नहीं हुई क्योंकि वही काले बादल घर में बाढ़ ला चुके थे। इस रात मैं चैन से सो ना पायी और माँ बाबा की तो आँख बंद करने की भी हिम्मत न हो पाई। फिर हुई ,मेरा संस्कृत का इम्तिहान भी तो था तो मैं स्कूल के लिए तैयार हुई। तभी मैंने माँ को नानी से फ़ोन पर कहते हुए सुना कि अब जीने की इच्छा नहीं होती, उन्हें रात को यह ख्याल आया कि चूहे मारने की दवा खा लूं ओर अपनी संतान को भी खिला दूं पर उन्हें यह याद था कि उन्हें किसी और कि ज़िन्दगी के साथ खिलवाड़ करने का अधिकर नहीं है । मुझे यह सुन पहली बार समझ आया की डर क्या होता है। बाबा आफिस में थे और भाई भी घर से बाहर। अगर मैं भी चली गयी इम्तिहान के लिये तो माँ कुछ कर ना ले इसका था डर। पर जाना तो था ही इसलिए मैं डरते डरते स्कूल गयी और जल्दी से इम्तिहान देकर घर की ओर दौड़ी। घर में घुसी तो माँ सिलाई करते हुए मिली। शब्दों मे बयां नहीं कर सकती उस पल जो दिल को सुकून मिला। मैं भूल गयी थी कि वो माँ है और मेरी माँ कमज़ोर पड़ सकती है पर हार नहीं सकती। अब बाबा और मैं जब उन्हें थकने का मौका नहीं देते तो माँ मुस्कुराकर पूछ ही लेती है क्या "मैं मरने वाली हूं जो मेरी इतनी परवाह है तुम्हें।"