लालच का परिणाम
लालच का परिणाम
एक समय की बात है एक ज्ञानी साधु एक कुटिया में रहता था। वह प्रतिदिन शाम के समय नदी किनारे ध्यान करने जाता। वह लोगों की समस्या का समाधान सरलता से कर दिया करता तथा गरीब और असहाय लोगों की भी उचित रुप से सहायता करता।
एक बार एक लालची सेठ को यह बात पता चली, वह एक भिखारी का वेश धारण करके साधु के पास गया और बोला- ''साधु महाराज मैं बहुत गरीब हूँ, आपके बारे में बहुत सुना है। आप मेरी सहायता करेंगे यह आशा लेकर आया हूँ।ʼʼ
साधु को पता था यह भिखारी नहीं है, फिर भी उन्होंने सेठ की सहायता करने को तैयार हो गए।
उन्होंने उसे कुछ खाने को दिया, परन्तु भिखारी ने कहा कि - '' इससे तो केवल एक ही बार मेरी भूख शान्त होगी, आप मुझे कोई स्थिर उपाय बताइए।" साधु समझ गया था कि वह पैसे मांगना चाहता है, इसलिए उसने भिखारी को कुछ पैसे दिए। सेठ पैसे लेकर वहाँ से चला गया।सेठ ने सोचा यह साधु तो बहुत मुर्ख है।
वह फिर भिखारी का वेश धारण करके साधु के पास पहुँचा और बोला - "महाराज आपने मुझे जो धन राशि दी थी, वो एक दिन में ही खर्च हो गई। आप तो ज्ञानी है मुझे कोई ऐसी चमत्कारी वस्तु दीजिये जिससे मेरे पास धन की कमी नहीं हो।"
साधु को उस व्यक्ति पर क्रोध आ रहा था, परन्तु वह अपनी शान्ति तोड़ना नहीं चाहता था इसलिए उसने सेठ को कहा - "नदी किनारे एक चमत्कारी पारस पड़ा है, उससे लोहा स्वर्ण बन जाता है। तुम उसे ले लो और अपना जीवन खुशी-खुशी बीताओ।"
सेठ प्रसन्न हो गया और नदी के किनारे जाकर पारस ले आया।
उसे पारस लिए कुछ ही समय हुआ था कि लालच ने उसे घेर लिया। वह पुनः साधु के पास गया और बोला- " महाराज, आप के पास ज़रूर इस पारस से भी अमुल्य वस्तु है जिसके लिए आपने पारस त्याग दिया। मुझे वह वस्तु चाहिए।
अब साधु के क्रोध की कोई सीमा नहीं रही, वह बोला - " हे मुर्ख लालची मनुष्य! तुमने अब सारी सीमा पार कर चुकी हैं। मैं जानता हूँ कि तुम कोई भिखारी नहीं हो , फिर भी मैंने तुम्हारी सहायता करने में कोई कसर नहीं छोड़ी पर तुम दुष्ट लालच से इतने घिर चुके हो कि तुम्हे सुधारा नहीं जा सकता, मैं तुम्हें श्राप देता हूँ कि......"
इतने में ही सेठ ने पश्चाताप की ध्वनि में कहा -"नहीं...नहीं! ऐसा न कीजिये, मुझसे भूल हो मुझ अबोध को ज्ञान नहीं था अब मैं समझ गया कि लालच बुरी बाला है..."
परन्तु साधु ने उसकी एक न सुनी और कहा -"तुम्हे भिखारी बनने का बहुत शौक है ना तो तुम अब अपनी धन सम्पदा खोकर भिखारी बनकर गली-गली घुमोगे।" साधु के श्राप के अनुसार अब न तो सेठ के पास अपना धन और न ही रहने के लिए स्थान था।
अब वह गली-गली भीख मांगता
और लोगों को अपनी कहानी सुनाकर लालच न करने की शिक्षा देता।