क्या यही अपने होते हैं
क्या यही अपने होते हैं
ये सपने मेरे अपने हैं,
पर अपने क्यों नहीं मेरे अपने हैं,
मेरी हर सफलता से क्यों ये जल जाते हैं
मन प्रसन्न नहीं होता पर मिलनेे चले आते है,
मेरी हर नाकामी से ये क्यों खुश हो जाते हैं,
मुझे परेशानी में देखकर ये क्यों गदगद हो जाते हैं,
मैं हूं सही या गलत राह पे ये क्यों नहीं मुझे बतातेे हैं,
हूं सही तो क्योंं नही मुझे आगे बढ़ाते हैं,
हूं गलत तो क्योंं नही मुझे डांट लगाते हैं,
मैं बिगड़ जाऊं तो क्यों ये प्रफुल्लित हो जातेे हैं
फिर क्यों सहानुभूति देनी चले आतेे हैं,
सुख में चलेेे आते पर दुख में कहां चले जाते हैं
जिस वक्त साथ चाहिए उस वक्त क्यों मुकर जाते हैं,
क्या यही अपनों के सपने होते हैं
गम में देखकर अपनों को ये अपनेे क्यों खुश हो जाते हैं ,
ए वक्त मुझेेे ये बता--
ये अपने सपनों की तरह अपने क्योंं नहीं होतेे हैं।।।।