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ଫାଲଗୁନି ରଣା

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कुम्हार के दिपक की महक

कुम्हार के दिपक की महक

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एक जमाना ऐसा था जिस जमाने में न तो हमारे पास कोई विदेशी सामग्री थी और न ही कोई विदेशी वर्तन। था तो सिर्फ स्वदेशी चीजें और कुम्हार द्वारा निर्मित मिट्टी का घड़ा। तब भी उस जमाने में हम खुशहाली से दिन गुजार ही लेते थे। लेकिन आजकल जिस तरह से वैदेशिक पदार्थ का फैलाव हो रहा है मानो हमारे कुम्हार भाइयों के कौलिक वृत्ति में ग्रहण लग गया हो। धीरे धीरे कुम्हार निर्मित चीजों कि आवश्यकता कम होती जा रही है जो हमारे देश के हित में अच्छा संकेत नहीं है। इसलिए हमारा यह फर्ज बनता है कि किस तरह से कुम्हार भाइयों के कौलिक वृत्ति का संरक्षण किया जाये उसपर विचार विमर्श करें। कुम्हार के दीयों का महत्व अतुलनीय है। कुम्हार के दीयों से अपूर्व सुगंध का निर्गत होता है। इसलिए हमें सिर्फ स्वदेशी चीजें ही खरीदनी चाहिए। 

         कुम्हार भाइयों की मेहनत हमें यह सिख देती है की हर वक्त हम समय का सदुपयोग करें। निरन्तर श्रम की सार्थकता को जाने और हमारे देश की मिट्टी कितनी अच्छी है यह दुनिया को देखा दें। हमारे देश की मिट्टी दिव्य और अनुपम है। इसलिए तो हमारे देश में ही सभी देवी-देवताओं की उत्पत्ति होती है। 


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