कुछ पल की वो दोस्ती
कुछ पल की वो दोस्ती
दोस्ती एक अनोखा और असाधारण संबंध है जो परिवार के बंधन से भी बढ़कर होता है । एक व्यक्ति के जीवन में दोस्ती की अनगिनत आख्यान होता है । पर मेरा दोस्ती की कहानी एक असाधारण और यादगार स्मृति के रूप में उभरती है, जो आकांक्षाओं से भरी हुई है।
बातें बचपन की में अपने ममी, पापा के साथ शाम को पार्क में घूमने गया था । में उन्हें बोलके बच्चों के खेलने का क्षेत्र में खेलने चला गया।
उस दिन मौसम काच की तरह साफ था और हवा बि धीरे धीरे आके बदन को छू कर जा रहा था । इन सब के बीच में आपने बाइक राइड में खोया हुआ था ' घूं घूं घूंऊं....' वो जो आता है ना स्प्रिंग वाला बाइक पार्क पर उस पर, वो मोशनलेस बाइक पे बैठ कर जो दुनिया घूमने का ख्वाब होता है ना बचपन का। में तो आपने ख्वाब में जी रहा था ।
इन बीच एक प्यारी सी आवाज मेरे कानों में आती है, " एक प्यारी सी लड़की मेरे उम्र की (७ साल) उसने एक प्यारी सी फ्रॉक पहन रखी थी, उसकी आंखों में सितारों की तरह चमक और मुंह में प्यारी सी मुस्कान थी वो बिल्कुल एक फूल जैसी खुबसूरत थी " ।
उसने मुझे बोला, " क्या में तुम्हारे पीछे बैठ जाऊं?"
में थोड़ा शर्मिला स्वभाव का था तो में अपना सवारी पूरा उसको दे दिया
उसने मुझे बोला की ठीक है, " तुम मेरी पीछे बैठ जाओ "
मैने बोला , " नहीं कोई बात नहीं ठीक है "
उसने बोला की, " बैठ जाओ मिल कर खेलते है"
हम दोनो मुलाकात उस दिन पहली बार हुई थी पर चाचा जी मेरे कॉलेज में दाख़िला दिला दीजिए मेरे साथ कॉलेज आती जाती रहेगी । उसने अपना नाम, "आरना" बताया और मुझे मेरा नाम पूछा? में बोला, " रितेश" हम दोनो के बीच बहुत से बाते हुई जैसे सालों बाद दो दोस्त मिल रहे हो पर मुझे वो प्यारी सी दोस्त उस दिन ही मिली थी । हम दोनों बहुत मजे किए उस दिन बहुत खेले। और उसने मुझे अपने जन्म दिन पर भी आमंत्रित किया और फिर मिलेंगे बोल कर चली गई , में भी उसे बाई बोल के अपने मम्मी पापा के पास चला आया।
मैं आज भी वो शाम को याद करता हूं और वो दोस्ती के बारे में सोचता हूं , कुछ पल की वो मिलना जिंदगी के एक याद बन गई। पर इस बात का दुःख है की में उसे अब कभी मिल नहीं पाऊंगा, अगर वो सामने होगी तो भी ना पहेचान पाऊंगा मेरी वो प्यारी दोस्त को, ना कभी जी पाऊंगा वो बीत गया बचपन को ........