कर्मफल में देरी
कर्मफल में देरी
सभी मित्रों से नम्र निवेदन एक बार निम्न घटना को संज्ञान में अवश्य लें।
एक बार की बात है मोहन, सोहन और मदनमोहन तीन मित्र हुआ करते थे। एक दिन पर्यावरण दिवस 5 जून को वे सब किसी कार्यक्रम में सम्मिलित होने एक दूसरे के यहाँ बारी बारी से गये।
पहले मोहन और सोहन, मदनमोहन के यहाँ मदनमोहन के पुत्र के जन्मदिवस पर पहुँचे। फिर मोहन और मदनमोहन, सोहन के यहाँ सत्यनारायण पाठ के अवसर पर पहुँचे। अंतिम में सोहन और मदनमोहन, मोहन के यहाँ मोहन की पुत्री के जन्मदिवस पर पहुँचे।
वहाँ वे कार्यक्रम हो जाने के उपरान्त थोड़ी देर बैठे। मोहन बोला देखो घर में कितनी हरियाली है, अच्छा लग रहा है, बहुत मेहनत से लगाए हैं ये सब पेड़ पौधे। सोहन बोला, इसमें मेहनत कैसी? दुकान से पौधा लाओ और लगा दो। मदनमोहन बोला यार मेरा तो माली ही लगा जाता है सब, कोई दिक्कत नहीं है। मोहन को थोड़ा बुरा लगा, और फिर बहस कुछ ज़्यादा होती देख वह बोला, चलो एक काम करते हैं, हम सब एक-एक पपीते के पेड़ का बीज बोएंगे, तीन माह बाद फिर इसी क्रम में एक दूसरे के घर चलेंगे। जिसका पौधा सर्वाधिक बड़ा होगा, उसे ही सम्मानित किया जाएगा। तीनों मित्र इस प्रतियोगिता को सहमत हो गये। सभी मिलकर अगले दिन बाज़ार की एक पौधे की दुकान से एक एक पपीते के पेड़ का बीज ले आए। मोहन ने तो बीज बोया, परन्तु सोहन और मदनमोहन के मन में कुछ और चाल आई। वे तीनों अगले दिन फिर छिपते छिपाते एक दूसरे को बिना बताए बाज़ार गये।
1- मोहन बाज़ार गया और पपीते के बीज के लिये खाद ले आया और उसने बीज के आसपास वह खाद डाल दी।
2- सोहन बाज़ार गया और पपीते की एक पौध ले आया, और उस पौध को अपनी एक क्यारी में लगा दिया।
3- मदनमोहन थोड़ा होशियार ज़्यादा बना, वह बाज़ार गया और वहाँ से पपीते का एक बड़ा फल लगा पौधा ले आया और उसे अपने घर के एक कोने में लगा दिया।
समय बीत रहा था, एक महीना, दो महीना, मोहन का लगाया बीज अंकुरित नहीं हुआ। सोहन की लगाई पौध भी कुछ खास नहीं बढ़ सकी और मदनमोहन का पौधा लगभग सूख गया था, वह चिंता में था पर करता भी तो क्या? सोच रहा था बीज भी तो बोया है, वह अंकुरित होगा, जो हुआ नहीं। तय यह हुआ था कि तीन माह से पूर्व कोई भी एक दूसरे के घर नहीं जाएगा।
अब तीन माह हो गये, आज परिणाम का दिन था।
1- सोहन और मोहन, मदनमोहन के यहाँ पहुँचे, सूखा पेड़ दिखा। बीज भी अंकुरित ना हुआ। वे सब थोड़ा हँसे और चल दिये।
2- मोहन और मदनमोहन, सोहन के यहाँ गये, पौध भी सूख चूकी थी और बीज भी बिना खाद अंकुरित ना हुआ। सब उपहास उड़ाकर चल दिये।
3- सोहन और मदनमोहन, मोहन के यहाँ पहुँचे, देखा मोहन का लगाया बीज थोड़ा अंकुरित हुआ था और पौध एक अंगुली तक बड़ा भी हो गया था।
सोहन और मदनमोहन ने, मोहन की सरहाना करते हुए पूछा कि तीन महीनों में इतना छोटा पौधा कैसे हुआ? मोहन बोला यार मैंने जो बीज लगाया था वो मेरे भाग्य समान था, देर से जागा, किंतु जागा अवश्य। निश्चित यही हुआ था की सब बीज लगाएंगे, लेकिन, सोहन ने पौध और मदनमोहन ने बड़ा पौधा लगाया, जिसे छल माना गया।
शिक्षा:- आपके सत्कर्मों और निश्छलता का फल आपको मिलेगा, ये बात निश्चित है, बस संयम बनाएँ रखें, देर हो सकती है।
धन्यवाद। -