STORYMIRROR

प्रवीण कुमार सोलंकी

Others

3  

प्रवीण कुमार सोलंकी

Others

कोरोना, लॉकडाउन और भारत

कोरोना, लॉकडाउन और भारत

4 mins
225

“लॉकडाउन“ एक ऐसा शब्द जिसे सुनकर हर किसी को एक बार तो मन में गुस्सा आ ही जाता है। देश में लॉकडाउन लगने से कोई फायदा हुआ या नहीं ये तो नही कह सकता लेकिन बहुत सी समस्याएं, और परेशानियां जरूर अनलॉक हुई है। इस लॉकडाउन ने देश का वो चेहरा दिखाया जिसकी लॉकडाउन से पहले किसी ने कल्पना भी नही की होगी।

काले धन को साफ करने का नारा इस देश में बहुत चला लेकिन दरअसल इस समय इस देश के लोगों के काले मन को सफेद करने की ज्यादा जरूरत है। ऑक्सीजन सिलेन्डर तक की कालाबाजारी की, मौत के घाट उतर चुके इंसान को दुनिया के घाट (कब्रिस्तान) तक पहुंचाने का रास्ता भी पैसों की गाडी से होकर गुजरा। किसी ने सही ही कहा है, “बाप बड़ा ना भैया, सबसे बड़ा रूपैया“, और इस रूपये के सारे खेल हमने देख लिये।

इस लॉकडाउन ने एक बार फिर गरीबी और अमीरी का फर्क साबित किया है। अमीर लोगों की संपत्तियां कई गुना बढ़ गई, सोने-चाँदी के भाव बढ़ गए, पेट्रोल के भाव भी बढ़े, लेकिन आम लोगों की कमाई नहीं बढ़ी, वरन कई लोगों कि तो सैलेरी भी कम कर दी गई। जिनका व्यवसाय है और जो रोज कमा कर खाने वाले है, उन सब की हालत खराब हुई। एक तो लोगों की कमाई बंद, उस पर बिजली-पानी, राशन, सब्जी-सामान महंगे, बच्चों की फीस तक माफ नही हुई और उन्हें पास कर दिया गया। शिक्षा व्यवस्था ने यह साफ कर दिया कि पैसा शिक्षा का नहीं बल्कि पास होने का लगता है। किरायेदारों से किरायों के पैसे ले लिये गये, और बता दिया कि तुम्हारे बच्चे भूखे मरे तो मरे लेकिन हमारा घर चलता रहना चाहिए।

चाँद, मंगल पर जाने के मिशन बने और हो सकता है कि कल को दूसरे ग्रहों पर भी जाने का मिशन बन जाए और बता दे दुनिया को कि हमने भी सफलता की उड़ाने भरी है। लेकिन क्या आपको पता है कि हमारे देश के लोग चाँद को देखकर दुआएं करते है और सूरज को देखकर नमस्कार करते है। कितने ही लोग बेचारे भूखे सोते है और चाँद को देखते रहते है, उनके मन में कभी ये नहीं आता कि हम चाँद पर जाए, बल्कि उनकी आँखों में ये ख्वाब होता है कि अगले दिन खाना मिलेगा या नहीं। गंगा किनारे बहुत सी लाशें मिली, कब्रिस्तानों में जगह कम पड़ गई, अस्पतालों में बेड कम पड़ गये, वैक्सीन की डोज कम पड़ गई और तो और ऑक्सीजन भी कम पड़ गई। धरती पे तो जगह कम पड़ी है, और हम चाँद, मंगल पे जाने की तैयारियां करने में लगे हुए है।

सदियों से कहावत जारी है “स्वार्थी मत बनो“ लेकिन इस देश की बागडोर जिनके हाथों में है, वो खुद स्वार्थी बन बैठे है। बच्चों को देश का भविष्य माना जाता है, उन्हें तो बिना पढ़े पास करवा दिया क्योंकि लॉकडाउन था लेकिन चुनाव हुये, रैलियाँ हुई और वोटिंग भी जारी रही। इन देश के कर्णधारों ने आखिर अपना उल्लू सीधा कर लिया। मजाक की बात तो ये है कि देश की जनता ने कई हड़तालें की, कैंडल जलाये, रैलियाँ की जनजागृति के लिये, लेकिन जब बारी आयी चुनाव और वोटिंग का विरोध करने की तो सबको जैसे सांप सूँघ गया। किसी को कोई आपत्ति नहीं।

“आत्मनिर्भर“ बनने का सपना देखा इस देश ने लेकिन यकीन मानिये इस लॉकडाउन ने उधार और भीख मांगने के हालात पैदा कर दिये है। जिस पेट में अन्न का दाना ना हो वो गुलामी करने तक को तैयार हो जाता है, आत्मनिर्भर बनने की बात तो बहुत दूर है। सच बात तो ये है कि हमारे पास बड़ी -बड़ी मूर्तियां (देश के महानायकों की) बनाने के पैसे है, मंदिर-मस्जिद बनाने के पैसे है, और भी अन्य कामों के लिए पैसे है लेकिन किसी का घर चलाने में मदद करने के लिए पैसे नहीं है, किसी को सहारा देने के पैसे नहीं है।

इस देश में सब बुरा ही नहीं हुआ, हमने सफलता के कई कीर्तिमान रचे है। और हो सकता है कि आने वाले समय में हम बहुत कुछ करें। अब सोचने की बात यह है कि हम किस दिशा की ओर आगे बढ़ रहे है, हमारी तरक्की और सफलता का वरीयता क्रम क्या होना चाहिए। लेकिन इस लॉकडाउन ने साबित कर दिया की गरीब और गरीब हो रहा है, अमीर और अमीर। 

यह मेरे अपने व्यक्तिगत विचार है, मेरा इरादा किसी का दिल दुखाना या किसी की बुराई करना नहीं है, मैंने तो जो हो रहा है उसकी एक तस्वीर अपने विचारों के जरिए आपके सामने रखने की कोशिश की है।

जय हिन्द 

जय भारत


Rate this content
Log in