कौन बनेगा करोड़पति
कौन बनेगा करोड़पति
मेरे बेटे की उम्र 8 वर्ष कक्षा 3 मैं पढ़ता है। टीवी में प्रसिद्ध वह लोकप्रिय कार्यक्रम कौन बनेगा करोड़पति के एपिसोड को सब परिवार के लोग देखते हैं। मैं इतना पसंद नही करता, समय मिलता है तो, जब देख भी लेता हूं, अन्यथा परिवार के अन्य सदस्य जरूर देखते हैं । क्योंकि मेरी उम्र 50 वर्ष है, और जर्नल नॉलेज की इतनी आवश्यकता महसूस नहीं करता। मॉर्निंग मैं अखबार पढ़ लेता हूँ काफी लगता है।
बेटे का बालमन 5,6 एपिसोड देखने के पश्चात ,बेटे मैं बहुत जिज्ञासा कार्यक्रम को ले कर होनी लगी। मुझे अच्छा लगा कि जनरल नॉलेज मैं इंटरेस्ट ले रहा है। नोबेल कोविड-19 के समय काफी सारा समय मोबाइल और टीवी पर गुजर रहा है, कक्षाओं का कार्य भी सीमित मात्रा में दिया जाता है, जिससे काफी समय बेटे के पास बच जाता है। संजोग ही कहेंगे की उस कार्यक्रम के प्रति बेटे की जिज्ञासा उत्पन्न हुई।
लेकिन वो धीरे धीरे मुझे उस कार्यक्रम के बारे मे पूछताछ करने लगा। जिद करता है कि, आप भी उस कार्यक्रम में जाओ।
हॉट सीट तक कैसे जाते हैं, आप भी कोशिश करो। टीवी मैं ऐड देख कर ( सोनी लाइव एप ) के बारे मैं पूछताछ करना काफी ज्यादा होने लगा।
10 हजार रुपए कितने होते हैं? 10 लाख में कितने जीरो होते हैं? पूछता है, बार बार ये प्रश्न पूछता रहता है। पैसे का महत्व शायद समझने लगा है? इतने पैसों में हम क्या-क्या चीजें खरीद सकते हैं । कार खरीद सकते हैं ,साइकिल खरीद सकते हैं, क्या घर खरीद सकते हैं क्या ? उसी धनराशि से तुलना करके निर्णय लेता है कि ,हमें इतना पैसा जीतना है! अपने मन में पता नहीं क्या दुनिया रच रहा है? क्या पापा मैं इस शो मैं जा सकता हूँ, और आप( मेरे फोनर फ्रेंड) बनना ताकि मदद कर सकूं।
प्रश्नों के अपने उत्तर गेस करता है, सही होने पर बहुत खुश होता है, जिससे उसके हौसले बुलंद हैं। बेटे का नए तरह के शौक से, आजकल के बच्चों के सोचने के ढंग व पैसों के प्रति लगाव का पता चलता है।
अपने बचपन में हम सब खेलने व खाने पीने व कुछ पढ़ना इन बातों तक सीमित थे।
खेल भी हमारे गिल्ली डंडा ,कंचे ,साइकिल का टायर चलाना ,खो-खो यह सब गेम थे । समय के अनुसार चीजें बदल गई हैं ,बच्चों का मानसिक स्तर काफी अच्छा है, बेहतर है । व मानसिक रूप से काफी अलग सोचते हैं। जिसका प्रमाण है इस तरह के प्रोग्राम में बच्चों की रुचि होना।
टीवी स्क्रीन पर प्रोग्राम कार्यक्रम को इतने अच्छे से (प्रेजेंटेशन) प्रस्तुत किया जाता है, कि प्रोग्राम बहुत आकर्षक और अच्छे लगते हैं । शायद इसी कारण से बच्चे व हम लोग उन कार्यक्रमों की ओर आकर्षित भी होते हैं। बेटे को यदि कोई प्रश्न देखना होता है कि, अमिताभ जी ने कौन सा प्रश्न पूछा वो एकदम से कहता है ,पापा गूगल में देखो इसका आंसर, नहीं तो आप बताओ।
काश उसकी यह लालसा जिज्ञासा हमेशा बनी रहे ना सिर्फ पैसे या प्रलोभन के लिए जबकि अपने आसपास के परिवेश व समाज और दुनिया को जानने की ललक बरकरार रहे तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।
एक ज्वलंत प्रश्न यह भी है, बच्चों को कुछ सीखने के लिए प्रेरित करने के लिए इनमें से क्या बेहतर तरीक़ा है? क्या पुरस्कार दिए बिना उनमें सीखने की खुशी बढ़ाई जा सकती है?
एक शिक्षक होने के नाते मैं यह महसूस करता हूं कि ,छोटी उम्र के बच्चों को आर्थिक धनराशि का प्रलोभन देकर कार्य कराना उचित नहीं है । जो कि कौन बनेगा करोड़पति के कार्यक्रमों में भी एक उम्र तय की गई है । क्योंकि छोटी उम्र में प्रोत्साहन शिक्षा को आर्थिक प्रलोभन से जोड़ देना एक खतरनाक चीज है।
मज़े के लिए किए जाने वाले काम में आर्थिक प्रोत्साहन जुड़ जाने से अनुभव एकदम बदल जाता है, यह बेटे को देखकर ऐसा लगता है। बेटे के जिद को देखते हुए, मेरा भी मन परिवर्तित होने लगा है । मैं भी चाहता हूं कि अगले वर्ष जरूर प्रयास करूं। लेकिन उन भाग्यशाली प्रतिभागियों में शामिल होना कड़ी मेहनत और भाग्य दोनों का साथ चाहिए होता है। दुनिया भर की जानकारियों को इकट्ठा करना व तार्किक सोच की आवश्यकता होती है।
