काग़ज़ की नाव : एक मन्नत
काग़ज़ की नाव : एक मन्नत
बचपन की बारिश और कागज़ की नाव में ठीक वैसा ही संबंध होता था जैसा एक बैल में और उसके गले में बंधे घुंघरु में होता है।एक ज़रा भी हिलता तो दूसरा भी शोर करने लगता।ऐसा संबंध हर घर के सदस्यों में हो जाए तो पूरी कायनात रिश्तों की बगिया में प्यार की खुशबू से महक उठे।
"सुधा, क्या तुमने मेरे बटुए से 500 रुपए निकाले हैं।"
रवि ने जूते के फीते बांधते हुए पूछा।
"नहीं जी, आपसे बिना पूछे तो मैं आपके सूटकेस तक को हाथ नहीं लगाती।फिर आपके बटुए से पैसे निकालना.... मेरी सोच से परे है।वैसे भी मुझे चाहिए हो तो मैं आपसे डायरेक्ट ही मांग लेती हूं।" सुधा ने किचन से ही जवाब दिया।
"फिर मेरे बटुए से 500 रुपए गए कहां? मुझे अच्छे से याद है मैंने 2200 रुपए रखे थे 1700 ही बचे है। अवि बेटा कहीं तुमने तो..."
"नहीं पापा।" अवि ने बीच में ही झट से बोल दिया।
क्या अवि जहां एक ओर तू अपने परिवार के लिए प्यार और सलामती की दुआ मांगता है वहीं दूसरी ओर तू ऐसी हरकत करके प्यार के माहौल को गलतफहमी,शक और नफ़रत से भर रहा है।दोस्तों के साथ कौन नहीं रहता।और मजाक- मस्ती भी जायज़ है लेकिन उनसे ऐसी पैसों वाली शर्त रखना कहीं न कहीं गलत है यार। अवि ये सब मन मैं सोंच रहा था।
दरअसल उसने 2 दिन पहले अपने दोस्तों से शर्त रखी थी कि अगले 2 दिन में उनके रिजल्ट आ जाएंगे और नूतन टॉप करेगा लेकिन नूतन 2nd आया था।जिसकी वजह से उसे अपने दोस्तों को शर्त के मुताबिक 500 रुपए की पार्टी देनी पड़ी।
उसका दिल बैठ गया और बड़ा मायूस हो गया था।आज उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था। एक तो चोरी का और दूसरा झूट बोलने का आज तक वह अपने पापा से झूट नही बोला था।
बड़े अजीब विचार आ रहे थे उसके दिमाग में।तूने पापा से झूट बोला, चोरी की।तुझे जीने का हक नहीं अवि।वो कुछ देर रोया।और फिर अपनी डायरी खोल ली।
उसने अपनी गलती और अपनी मन्नत अपनी डायरी में लिख दी। यह वही डायरी थी जिसमें वह बचपन से लिखता आया था। जब वह बहुत खुश होता और जब वह बहुत दुखी होता तो उस डायरी में अपनी कलम से शब्दों को रख देता था।
रवि ये सब दरवाज़े की आड़ से देख रहा था। एक्चुअली उसे सुधा ने कहा था कि उसे पिछले 2-3 दिनों से अवि कुछ बदला-बदला सा लग रहा है।जब अवि और सुधा सो गए तो रवि धीरे से अवि के कमरे में आया और उसने वह डायरी निकाल ली। कुछ पन्ने पलटने पर उसे आज की तारीख वाला पन्ना मिल गया।
जिसमें ऊपर लिखा था।
1)मन्नत:- मेरा परिवार हमेशा खुश रहे। मेरे मां-पापा में हमेशा प्यार बना रहे और मेरे पापा कभी भी मेरी वजह से मजबूर न हों। मेरे मम्मी-डैडी को कभी भी मुझ पर शर्म महसूस न हो।
2)गलती:- सॉरी...पापा
सॉरी...मम्मा।
मैंने 500 रुपए चोरी किए थे। मैं शर्त हार गया था और वो लोग आपका नाम लेकर मेरा मजाक उड़ाते इससे पहले मैंने अपनी शर्त पूरी करके उन्हें चुप कर दिया है।
सॉरी
रवि को लगा कि आज मुझे अवि के पास ही सोना चाहिए।और वो उसी कमरे में अवि के बगल में सो गया।
सुबह उठकर उसने अवि को अपने पास बुलाया और उसके सिर पर बड़े प्यार से हाथ फेरते हुए कहा -
" अवि बेटा, पापा से कितना प्यार करते हो तुम।"
"अ....पापा मैं बता ही नहीं सकता...आपके प्यार को बता दूं मुझे नहीं लगता किसी शब्द की इतनी ताकत और औकात होगी।" अवि ने नज़रें चुराते हुए कहा।
"बस यही...यही तो एक कमी रह गई तुझमें बेटा।तूने आज तक मुझसे नज़रें मिलाकर बात नहीं की।न तेरे प्यार को और न तेरी खुशी को मुझे खुलकर बताया।ऐसा क्यूं बेटा?" रवि ने बड़े विनम्र और प्यार भरे लहजे में कहा।
"पापा आप आज...ये..." अवि आगे बोल नहीं पाया।
"बेटा प्रॉमिस कर की आज के बाद तेरे हर सुख-दुख में तेरी हर बात में मैं शरीक रहूंगा।तू मुझसे कुछ नहीं छिपाएगा। मैं तुझ पर अपनी ख्वाहिश, अपने सपने नहीं रखूंगा बेटे।एक बार तो अपने पापा पे भरोसा करके देख।और कोई गलती हुई हो तो सॉरी बेटा।" कहते हुए रवि अब रूआंसा हो गया था।
"आई एम सॉरी पापा" ये कहते हुए अवि की आंखें रुक नहीं पाई वो रो पड़ा। और उसके साथ ही रवि भी।सुधा ये सब दूर से देख रही थी।वह भी उनके पास आ गई और तीनों बहुत देर तक रोते रहे। यूं तो लोग अक्सर रोने से डरते है पर यहां पर तो वो रोते ही जा रहे थे।शायद इस रोने में उनका हंसना छिपा था।
ये माहौल अभी थमा ही था कि बारिश शुरू हो गई।शायद खुदा भी अब उनकी सारी तकलीफों को पानी में बहाकर ले जाने को आतुर था।
"पानी बाबा आजे, कांकड़ी भुट्टा लाजे।" अवि जोर- जोर से कहने लगा। फिर रवि और सुधा भी शुरू हो गए।
"अरे, अरे, रूकों भी। वो अपनी बगल वाली छोटी नाली शुरू हो गई होगी। चलों नाव का मजा लेंगे। मैं अभी आया।" ये कहते हुए रवि अपने बेटे के कमरे में गया और उसने डायरी से वो पेज निकाल लिया।उस पर पॉलीथीन लगा ली ताकि वो गीला न हो और उसे मोड़ता हुआ बाहर निकला। उस पेज की नाव बना रहा था क्योंकि वो पेज,वो शब्द आज उसके घर खुशियों का तालाब भर गए थे।इसीलिए उस नाव को वो हमेशा के लिए संभालकर रखना चाहता था।
तीनों बहुत देर तक बरसात की उस अद्भुत नाव को बहाते रहे, खुद भी बहते रहे और अपने गमों को दूसरे किनारे पर पहुंचाते रहे।
"कितना अच्छा हो, अगर हर बाप ऐसे ही अपने बेटे को अपनी नाव में बिठाता रहे।और हर बेटा राज़ी-खुशी से अपने पिता के साथ तैरता रहे और गमों को डुबोता रहे।अगर एक औलाद घर में किसी से भी अपनी सारी बात बेझिझक होकर शेयर करे और हर सुख-दुख की बात को बताएं कुछ भी न छिपाकर सब जताएं।गुमसुम न रहे तो हर घर जन्नत बन जाएं।काश! खुदा मेरी इस मन्नत को जल्दी सुन ले।" रवि ने बड़े अदब से दोनों हाथ आगे करके खुदा से मन्नत मांगी।