हूँ मैं ...
हूँ मैं ...
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गुजारे होंगे तुमने कई दिन ...
कई लंबी रातें ... अलमस्त शामें ...
अल्हड़ दिन और मचलती सुबहें ....
मगर जो नहीं गुजरा होगा ...
वो बस गहरी रात हूँ मैं ...
करी होंगी तुमने कई बातें ...
कई मुलाकातें ... गुफ्तगू ... दरम्याने सबसे
दिल पे जो लगेगी वो बात हूँ मैं ...
यूं तो मंज़िले जानिब मिली होगी तमाम भिड़ें
पूरा कारवां और तुम जिसमे खो दोगे अपने को भी
बस अपनेपन को जो एहसास कराये वो एक साथ हूँ मैं
बिताए होंगे कई एहसास तुमने
सबके और कुछ खास के साथ
मगर जो भुला न पाओ वो लम्हा खास हूँ मैं
की होंगी कई शिकायतें सभी से
होंगी नाराजगी भी सबसे
जो कभी कह न पाओ वो अलफाज हूँ मैं
जिसको चाह के भी कभी पा न सको
वो बस हूँ मैं ... बस हूँ मैं ...