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Om Prakash Gupta

Others

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Om Prakash Gupta

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हृदय की पुकार सच्ची होती है

हृदय की पुकार सच्ची होती है

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अवनीश की इच्छा थी कि वह गुजरात के वेरावल में स्थित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद द्वारकाधीश भी जाये, अत: शिवलिंग के दर्शन के बाद उसी दिन शाम को उस ओर जाने के सभी सवारी साधनों के बारे में पता किया, लगभग सारी ट्रेनें और बसें अपनें निर्धारित समय पर गंतव्य के लिए निकल चुकीं थीं, कुछ उपलब्ध नहीं था ।वह उदास होकर मन ही मन बुदबुदाने लगा और गंभीर चिंतन में होकर अपने हृदय से रुँआसा हुआ हाथ जोड़ कर ऊपर की ओर मुँह करके कहने लगा कि हे नाथ ! जाने का साधन नहीं है, आपका दर्शन करना लगता मेरे भाग्य में नहीं है। दैवयोग से तभी एक रिक्शा वाला आकर बोला, श्रीमान जी! पोरबंदर जाने के लिए आखिरी बस, मोड़ पर खड़ी है, बैठ जाइये, तेजी से छोड़ देता हूँ। उसे लगा कि ईश्वर ने उसकी मुसीबत को दूर करने के लिए अपने दूत के रूप में भेजा हो और उसकी आत्मा में छिपी आर्तनाद को सुन लिया हो, द्वारका के लिए न्यूनतम दूरी और कम से कम समय में पहुंचाने के लिए केवल यही बस ही उपयुक्त थी क्योंकि केवल इसी को पोरबंदर जाना था और इसी के पहुँचने के समय से जुड़ी दूसरी बस द्वारका जानी थी, उसने मन ही मन ईश्वर का आभार व्यक्त किया वह मोड़ पर खड़ी बस चढ़ गया और कंडक्टर ने उसे निर्धारित सीट पर बैठाकर यात्रा का टिकट दिया, अब वह बस से यात्रा कर समय पर पोरबंदर पहुंच गया। थोड़ी देर रात में रुकने के पश्चात लगी दूसरी बस से यात्रा कर वह ठीक समय पर द्वारका पहुंच गया। वहाँ अपने मित्र पुनीत के घर पहुंच, तैयार होकर मन्दिर पहुंचा, वहाँ दर्शन में अपनी सुध भूल गया वहां आये लोगों ने कहा, प्रणाम कर पास वाले भंडारगृह से मोहन भोग अवश्य ले लेना ।अतः प्रसाद लेकर टी शर्ट की जेब से रुपये निकाल, दान कर वहाँ से जाने लगा। अचानक उसका हाथ पैंट के जेब में गया, उसमें वालेट गायब देखकर उसके होश उड़ गये। कारण उसमें राजकोट से रायपुर तक ट्रेन का टिकट, एटीएम, पैन कार्ड, पहचान पत्र और कुछ नगद रुपये थे। उसको कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। वह पुनः मन्दिर आकर द्वारकाधीश के सामने बेबस होकर रोने लगा। उसका निश्छल हृदय पुकार कर कह रहा था कि भगवन, आपकी बड़ी महिमा सुनकर यहाँ आया, और आपके दरबार में बेबस हूँ। आप दीनबन्धु दीनानाथ है, आपका यह स्थान दिव्य और महिमा पूर्ण है, यह अचानक आई परेशानी से उबरना मेरे बस में नहीं है, मेरी शून्य हो गई है अब आप ही आये इस घोर संकट से उबारने में समर्थ हैं आपकी विरदावली भी बहुत भावपूर्ण है, हम उसी आर्त भाव से आपसे याचना कर रहा हूँ इतना मन ही मन बोलकर चुप होकर वह अधीर हो गया।

   मंदिर में भगवान के दिव्य मूर्ति में सामने हाथ जोड़ कर उनके आँख में आँख डालकर आँखों की भाषा में यह बोला कि कहते हैं कि" सब मानव के हृदय की पुकार सच्ची होती है" और सच्चे हृदय से पुकारने से आप सहायता के लिए आतुर हो उठते हैं ।यह कह वह खडा हुआ, तभी उसने देखा कि मंदिर के प्रांगण में उसके ठीक पीछे बिलकुल पास में अपनी सुरक्षा ड्यूटी में तैनात एक सुरक्षाकर्मी एक वालेट को उलट पलटकर कर देख रहा है, अब उसने गंभीर होकर तन्मयता से उस वालेट की वास्तविकता पर ध्यान केंद्रित किया, थोड़ी देर बाद उसे विश्वास हो गया कि सुरक्षाकर्मी के हाथ में आई वालेट उसी की है अब वह थोड़ा ठिठका और हिम्मत जुटा करके उसने उस सुरक्षाकर्मी से कहा, जी यह वालेट हमारा है, प्रमाण के तौर पर देख लीजिए, इसके अन्दर मेरा पहचान पत्र, पैन कार्ड और ट्रेन का आरक्षित टिकट है, अब उसने उसके अंदर रखे सारे कागजात मेरे सामने वालेट से बाहर निकाले तो उसने उसके कथनानुसार सही पाया, अब उस कर्मी ने कहा कि आपको हमारे इंचार्ज के पास चलना होगा तो वह आश्वस्त होकर अपनी सहमति दे दी, उसने उसके इंचार्ज के पास आत्मविश्वास से भरकर पुन: वही बात दोहरा दी, इंचार्ज ने भी उसकी आत्मविश्वास से आत्म विभोर होकर पूर्ण सुनिश्चितता से वालेट उसको दे दिया । और मुझे सावधान किया कि इस प्रकार की लापरवाही आपको आत्मघाती साबित हो सकती है I उसने इस बात पर सहमति दी और भविष्य इस तरह की लापरवाही न हो इस बात पर ध्यान देने पर सिर हिलाया I पुन: उस जगतन्नियंता परमेश्वर के चमत्कार पर आत्मा से आभार प्रकट किया I

इन सबके पीछे गूढ़ तात्पर्य यह है कि अगर ईश्वर पर विश्वास रूपी पगडंडी सुदृढ़ हो और वह सच्चे दिल से आतुर होकर पुकारता है, तो चमत्कार अवश्य होता है।

 


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