गुरुमंत्र (flash fiction)
गुरुमंत्र (flash fiction)
स्वर्णिम-रक्तिम सुबह और कच्चे रास्ते पर चलती बैल गाड़ी और उस पर राधू चाचा का चाची को बिना कारण पुकारते रहना। वास्तव में कभी कभी ऐसा लगता है कि कह दूँ कल को यदि चाची को कुछ हो जाए तो आप गुंगे हो जाओगे। किंतु आज सन्नाटा छाया हुआ है। पुछा तो पता चला उनका बेटा जो शहर में रहता था किसी गोरी लड़की को भगाकर ले आया है। रो रो कर चाचा - चाची दोनों बेहाल। देखने गई तो पता चला बहुत ही पढ़ी लिखी संस्कारी लड़की है पर हमारे देश की नहीं है। चुन्नू भैया भी शहर में इंजीनियर हैं पर उनका रंग श्यामल है.. काला भी कहा जा सकता है।
मैंने पुछा चुन्नू भैया से कि लड़की तो सुंदर है संस्कारी है... फिर चाचा-चाची नाराज़ क्यूँ है?
तो उन्होंने कहा, बहन इनको लग रहा.. इस लड़की ने इस घर का गाँव का शील नष्ट कर दिया है। विदेशी है... इसलिए।
मैंने.... भैया ये लीजिये... कह कर, हाथ में एक कागज़ का टुकड़ा थमा दिया। सात साल बाद फिर जब मैं गाँव आयी तो देख रही हूँ गोरी भाभी साड़ी पहन कर कुएँ के पास कपड़े धोते धोते गाँव की भाषा में बात कर रही है और चाचा-चाची गोरे गोरे दो बच्चों के साथ खेल रहें हैं..।
और चुन्नू भैया.... मुझे देखते ही बोले कि आज भी वो कागज़ का टुकड़ा मेरे पास है.... तभी तो पिताजी की तरह तेरी भाभी भी बिना कारण सुबह होते ही चिल्लाती रहती है.... पर बहुत शांति है क्यूँ कि मेरे माता-पिता इस उम्र में खुश हैं और हम सब साथ भी हैं, तुम्हारा गुरुमंत्र काम आया।
